Book Title: Tulsi Prajna 2008 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 39
________________ व्यवहार भाष्य में मानसिक चिकित्सा की दृष्टि से मन की तीन अवस्थाओं का उल्लेख किया है- 1. क्षिप्तचित्त। 2. दृप्तचित्त। 3. उन्मत्तचित्त। सामान्य या स्वस्थ मन को चिकित्सा की अपेक्षा नहीं। रुग्ण मन बिना चिकित्सा के स्वस्थ नहीं हो सकता। भाष्यकार ने मन को स्वस्थ कैसे किया जाएं? मन अस्वस्थ क्यों होता है? उसे स्वस्थ करने के क्या उपाय हो सकते हैं? इनका मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत ही सरल और सटीक चित्रण किया है। क्षिप्तचित्त-क्षिप्त चित्त का अर्थ है-चित्त विप्लव या चित्त की रुग्णता। भाष्य में चित्त की विक्षिप्तता के तीन कारण बताए हैं-अनुराग, भय और अपमाना21 । ___ अनुराग-प्रिय व्यक्ति का वियोग या अनिष्ट होने से होने वाली चित्त की क्षिप्तता। यथा - पति की अकस्मात् मृत्यु का समाचार सुनकर भार्या का क्षिप्तचित्त होना।22 भय-विक्षिप्तता का एक बड़ा कारण है-भय। भाष्यकार ने भय के अनेक कारणों का उल्लेख किया है, यथा- हाथी आदि पशुओं को देखकर, शस्त्र, अग्नि आदि देखकर, मेघ का गर्जन सुनकर भी व्यक्ति क्षिप्त चित्त हो जाता है। मनोविज्ञान की भाषा में यह एक प्रकार का असंगत भय है। आधुनिक मनोचिकित्सक इसे फोबिया कहते हैं ।24 इस प्रकार के रोगियों की एक लम्बी सूची है, यथा-ऊँचे स्थान का भय, तूफान, बिजली का भय, अग्नि का भय, जानवर विशेष (कुत्ता, बिल्ली, चूहे) का भय आदि। ____ अपमान-तिरस्कार या अपमान से भी चित्त विक्षिप्त हो जाता है। यथा-सम्पत्ति छीन लेने से, वाद में पराजित होने से चित्त का विक्षिप्त होना।25 दृप्तचित्त-दृप्त का कारण है-विशिष्ट सम्मान की प्राप्ति। जैसे-अग्नि ईंधन से दीप्त होती है, वैसे ही दृप्त चित्त व्यक्ति का मन गर्व से उद्दीप्त हो जाता है। लाभ मद से मदोन्मत्त अथवा अशक्य कार्य को करके व्यक्ति दीप्तचित्त हो जाता है। भाष्यकार ने राजा सातवाहन के उदाहरण से दीप्त चित्त की मनोवृत्ति का सांगोपांग चित्रण किया है। राजा सातवाहन एक साथ अनेक अतिहर्ष के सामचार सुन दीप्तचित्त हो गया। स्तंभ और भींत को पीटता हुआ प्रलाप करने लगा।28 उन्मत्त चित्त दिग्मूढ़ मनः स्थिति के कारण होने वाली चित्त की अवस्था को उन्मत्त चित्त कहा जाता है। दो कारणों से व्यक्ति उन्मत्त बन सकता है। 1. भूतादि यक्षावेश, 2. मोहनीय कर्मोदया अतिरिक्त पित्त के उद्रेक व वायु क्षोभ से भी उन्मत्त चित्त की स्थिति हो जाती है। चित्त त्रय की चिकित्सा विधि क्षिप्त चित्त की चिकित्सा करने के लिए आज जिस पद्धति को मनोचिकित्सा काम में लेते हैं, वही पद्धति हजारों वर्ष पूर्व काम में ली जाती थी। भाष्यकार ने इसका स्पष्टीकरण इस 38 - तुलसी प्रज्ञा अंक 138 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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