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का गुम्फन हुआ है, उसको नजरअन्दाज भी नहीं किया जा सकता। कहा जा सकता है कि इसमेंवर्णित तथ्य भारत के तत्कालीन इतिहास की अपूर्णता को किसी-न-किसी रूप में पूर्णता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रस्तुत लेख में निशीथ एवं उसके व्याख्या साहित्य के आधार पर ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से ईसा की छठी शताब्दी कालीन भारतवर्ष की आर्थिक स्थिति का संक्षिप्त रेखांकन करने का विनम्र प्रयत्न है।
किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए मुख्यतः चार पहलुओं की चर्चा की जाती है-उत्पादन, विभाजन, विनिमय और उपयोग। विभाजन का आधार हैअर्जित धन का अपने पेशे से संबंधित व्यक्तियों में बंटवारा। प्राचीन अर्थव्यवस्था में विभाजन की उन व्यवस्थाओं की प्रासंगिकता नहीं थी जैसी उत्तरवर्ती सामाजिक अवस्थाओं में प्राप्त होती है, अतः तत्संबन्धी चर्चा की अपेक्षा नहीं , उपभोग विषयक चर्चा का मुख्य प्रयोजन है- तत्कालीन जीवन स्तर का निर्णय । वह वस्तुतः उत्पादन से ही प्रकट हो जाता है, अतः मुख्यतः उत्पादन
और विनिमय-दो ही घटक तत्त्वों की चर्चा करना यहां अपेक्षित है। उत्पादन
भूमि, श्रम, पूंजी, प्रबन्धन आदि के माध्यम से भौतिक पदार्थों के रूप में एवं परिणाम में परिवर्तन कर उनकी उपयोगिता बढ़ाना उत्पादन कहलाता है।
खेती-भारतवर्ष में उत्पादन का मुख्य आधार है-भूमि। भूमि से होने वाले उत्पादन के मुख्यतः दो भेद हैं-कृषि एवं खनिज। निशीथसूत्र में वट, पीपल, गूलर, अशोक, चम्पक, आम्र आदि के वनों तथा विविध फलों के सुखाने के स्थान (वर्च) का उल्लेख हुआ है।' उसके भाष्य एवं चूर्णि में सेतु और केतु शब्द आता है, जिससे यह स्पष्ट है कि उस समय के लोग खेती तथा उसकी विधाओं से परिचित थे। केतु वे खेत होते थे जिनकी सिंचाई वर्षा के जल से होती जबकि सेतु की सिंचाई के लिए रहट और नालिका का प्रयोग होता था। हलों में बैल जोतकर खेती की जाती। हल के लिए कुलिय और नंगल शब्द का प्रयोग मिलता है। लोग दिन-रात खेतों की रखवाली करते। रात्रि में सूअर आदि जंगली जानवरों से खेती की रक्षा हेतु सींग बजाया जाता।'
निशीथभाष्य में भी अपने समकालीन अन्य ग्रन्थों के समान सत्रह प्रकार के धान्य का उल्लेख मिलता है-चावल, जौ, मसूर, गेहूं, मूंग, उड़द, चना, कांगनी, कोद्रव, सरसों, हिरिमंथ (गोल चना) आदि इनमें प्रमुख थे। धान्य कूटने के लिए गंजशालाएँ होती थीं। अनाज को सुरक्षित रखने के लिए मिट्टी या बांस के पल्य (कोठे) बनाए जाते। कई लोग उसे मंच (बांस के खंभों पर बने कोष्ठ) तथा माले (घर के ऊपरी हिस्से में बने कोष्ठ) में सुरक्षित रखते। सुरक्षा की दृष्टि से पल्य आदि के द्वार पर मिट्टी पोत दी जाती तथा उस पर रेखांकन कर दिया जाता या मोहर
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तुलसी प्रज्ञा अंक 138
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