Book Title: Tulsi Prajna 2008 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ निशीथ एवं उसके व्याख्या साहित्य में भारतीय आर्थिक स्थिति डॉ. साध्वी श्रुतयशा जैन वाङ्गमय में आगम साहित्य का स्थान सर्वोपरि है। आगमों में चरणकरणानुयोगपरक साहित्य सर्वोत्कृष्ट माना जाता है, क्योंकि आध्यात्मिक उत्थान उसका केन्द्रीय तत्त्व है। चरणकरणानुयोग की दृष्टि से छेदसूत्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु ने आत्मविशुद्धि के लक्ष्य से प्रत्याख्यान प्रवाद नामक पूर्व से छेदसूत्रों का नि!हण किया। निशीथसूत्र उसी श्रृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसका निर्वृहण काल ईसा पूर्व चौथी शताब्दी का अन्त तथा तीसरी शताब्दी का प्रारम्भ काल माना जाता है। निशीथसूत्र के हृदय का स्पर्श करने के लिए व्याख्या साहित्य-नियुक्ति, भाष्य एवं चूर्णि का भी मनन करना अपेक्षित है, जिनका काल क्रमशः लगभग ईसा की चौथी शताब्दी, भाष्य की चौथी-पांचवी शताब्दी एवं चूर्णि की छठी शताब्दी माना जाता है। निशीथसूत्र तथा उसके व्याख्या साहित्य का अध्ययन करने पर हमें जहां तत्कालीन जैन संघ की आचार-विचार, नियम-उपनियम एवं विधि-निषेध की जानकारी मिलती है, वहीं अन्यान्य धार्मिक संघों एवं सम्प्रदायों के विषय में भी अच्छी जानकारी मिल जाती है। इतना ही नहीं, प्रसंगवश अनेक राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक धारणाओं एवं अवधारणाओं का भी इन ग्रन्थों में समावेश हुआ है। ___ निशीथसूत्र एवं उसका मुख्य व्याख्या साहित्य मोटे तौर पर एक सहस्त्राब्दी का प्रतिनिधित्व करता है। विविध वाचनाओं के समय इनमें अपेक्षित-अनपेक्षित प्रक्षेप आदि से हानि-वृद्धि हुई, जिसके कारण हम इस साहित्य को सर्वथा प्रामाणिक इतिहास ग्रन्थ तो नहीं कह सकते, फिर भी इसमें जिन ऐतिहासिक या अर्द्ध-ऐतिहासिक तथ्यों तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2008 008 - 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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