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79. पर्यायार्थिकगुणभावे द्रव्यार्थिकप्राधान्यात् सर्वे भावा अनुत्पादव्ययदर्शनात् निष्क्रिया नित्याश्च,
तत्त्वार्थ राजवार्तिक-5/7/25,पंचाध्यायी-ख/247,स्याद्वादमंजरी, कारिका-23, पृ.204-205 80. क्रियानिमित्त-उत्पादाभावेऽपि एषां धर्मादीनाम् अन्यथा उत्पादः कल्प्यते। तद्यथा- द्विविध उत्पादः।
स्वनिमित्तः परप्रत्ययश्च। स्वनिमित्तस्तावत् अनन्तानाम् अगुरुलघुगुणानाम् आगमप्रामाण्याद् अभ्युपगम्यमानानां षट्स्थानपतितया वृद्ध्या हान्या च वर्तमानानां स्वभावादेषाम् उत्पादो व्ययश्च। परप्रत्ययोऽपि अश्वादेः गतिस्थिति-अवगाहनहेतुत्वात्, क्षणे क्षणे तेषां भेदात् तद्धेतुत्वमपि भिन्नम् -इति परप्रत्यापेक्ष उत्पादो विनाशश्च व्यवह्रियते, स. तत्त्वार्थ राजवार्तिक- 5/7/3 षट्स्थानपतितवृद्धिहानिपरिणतस्वरूप- प्रतिष्ठत्वकारण-विशिष्टगुणात्मिका, अगुरुलघुत्वशक्तिः,
समयसार-आत्मख्याति, कलश- 263 पर 81. द्र. गोम्मटसार, जीवकाण्ड आदि।
प्रोफेसर
जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं (राजस्थान)
सम्मत्तपहिणिबदं मिच्छत्तं जिणवरेहिं परिकहियं । तस्सोदयेण जीवो मिच्छादिट्टि ति णादव्वो ।। णाणस्स पडिणिबद्धं,अण्णाणं जिणवरेहिं परिकहियं । तस्सोदयेण जीवो, अण्णाणी होदि णादव्वो ।। चारित्तपहिणिबब्दं कसायं जिणवरेहिं परिकहियं ।
तस्सोदएण जीवो, अचरित्तो होदि णादव्वो ।। आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं- सम्यक्त्व का प्रतिबंधक है- मिथ्यात्व, ज्ञान का प्रतिबंधक है- अज्ञान और चरित्र का प्रतिबंधक है- कषाय। मिथ्यात्व, अज्ञान और कषाय ये तीन हमारे जीवन के सबसे बड़े विप्न हैं, समस्या और दुःख की सृष्टि करने वाले हैं। जब तक व्यक्ति का दृष्टिकोण सही नहीं होता तब तक समस्या का चक्र अनवरत घूमता रहता है, अतः दुःख मुक्ति का सूत्र है- सम्यग् दर्शन।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 138
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