Book Title: Tulsi Prajna 2008 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 36
________________ जैन वाङ्गमय व्यवहार भाष्य में चिकित्सा पद्धति डॉ. साध्वी शुभ्रयशा जैन वाङ्गमय का आगम साहित्य जितना प्राचीन है, उतना ही सामयिका आगम संकलन के समय आगमों को दो वर्गों में विभक्त किया गया। उत्तरवर्ती वर्गीकरण के अनुसार आगमों के चार विभाग प्राप्त होते हैं-अंग, उपांग, मूल एवं छेद। छेद सूत्र आचार प्रधान है, अतः इनका समावेश चरणकरणानुयोग में किया गया है। इनका निर्वृहण प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय आचार वस्तु से हुआ है। निर्वृहण काल में छेदसूत्र नाम से कोई विभाग नहीं था। सर्वप्रथम आवश्यकनियुक्ति में छेदसूत्र' शब्द का उल्लेख प्राप्त होता है। छेदसूत्र के नामकरण के प्रसंग में विविध मत हैं। जो ग्रंथ निर्मलता, पवित्रता की प्राप्ति में सहायक हो, वह छेद है। व्याख्या साहित्य में इसके लिए पदविभाग समाचारी शब्द का प्रयोग हुआ है। एक मान्यता के अनुसार जो स्खलना होने पर चारित्र के छेद-काटने का काम करते हैं, वे ग्रंथ छेदसूत्र हैं। निशीथ भाष्य में इन्हें उत्तम श्रुत कहा है। निशीथ चूर्णिकार के अनुसार इनमें प्रायश्चित्त का वर्णन है, इनसे चारित्र की विशोधि होती है, इसलिए छेद सूत्र को उत्तमश्रुत कहना युक्तियुक्त है।' नामकरण के संदर्भ में आचार्य तुलसी ने एक नवीन तथ्य प्रस्तुत किया है। आपके अनुसार 'छेयसूत्त' के स्थान पर 'छेकश्रुत' शब्द भी हो सकता है। जिसका अर्थ है- कल्याण या उत्तमश्रुत। दशवैकालिक सूत्र में इसका संवादी प्रमाण भी मिलता है- 'जं छेयं तं समायरे'। अतः छेय के स्थान पर छेक शब्द उचित लगता है। छेदसूत्रों में व्यवहारसूत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पदविभाग समाचारी का जितना व्यवस्थित वर्णन व्यवहार सूत्र में है, उतना अन्य छेदसूत्रों में नहीं मिलता। इसका निर्वृहण भद्रबाहु ने किया, ऐसा अनेक स्थानों पर उल्लेख है।' प्रस्तुत सूत्र में साधु की आचार संहिता का व प्रसंगवश अपवाद मार्ग का विधान है। इन्हें लौकिक भाषा में दण्ड संहिता, आगमिक भाषा में प्रायश्चित्त सूत्र व तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2008 - 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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