Book Title: Tulsi Prajna 2008 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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25. (क) भागवत- 3/31/30-31, 6/17/18, __(ख) दशाश्रुत- 5/14 ,एवं कम्मा ण रोहंति, मोहणिजे खयं गए, संसारमूलहेतुषु मिच्छत्तं,
भगवती आराधना-724, संसारअडवीए मिच्छत्तन्नाणमोहिअपहाए, आवश्यकनियुक्ति909 26. (क) पुण्यपापे विधूय, निरंजनः परमं साम्यमुपेति,मुंडकोप. 3/3,
कृतकर्मनाशः कर्मक्षये भाति स तत्त्वतोऽन्यः, श्वेताश्वतरोप. 6/4 (ख) णिज्जरियसव्वकम्मो...पावदि सुक्खमणंत,मूलाचार- 749,,
कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ , दशवैकालिक- 4/24 27. (क) श्वेताश्वतर उपनिषद् 6/7-8, 11,16,19
उत्तराध्ययन- 29/1, 36/66-67, सव्वण्हू सव्वलोयदरसी य, मोक्षप्राभृत- 35, केवलणाणुवत्ता जाणंती सव्वभावगुणभावे। पासंति सव्वओ खलु केवलदिठ्ठीहिं णंताहिं,औपपातिक- 195/12 णठ्ठकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा, द्रव्यसंग्रह-51
परमात्मा सकलविषयविषयात्मा, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय- 223-24 28. तुलना : जैन मत,जण्णाणवसं किरिया मोक्खणिमित्तं परंपरया, -कुन्दकुन्दकृतद्वादशानुप्रेक्षा, 57 29. क्रियानिष्पाद्यस्य तु मोक्षस्य अनित्यत्वं प्रसञ्जयति,अमलानन्द-कृत वेदान्त कल्पतरु, 1/1/4
अक्रियार्थत्वेऽपि ब्रह्मस्वरूपविधिपरा: वेदान्ताः भविष्यन्ति ,भामती, 1/1/4 30. द्र. सांख्यकारिका, कारिका 10,सक्रियं परिस्पन्दवत्। तथा हि बुद्ध्यादयः उपात्तमुपात्तं देहं
परित्यजन्ति, देहान्तरं चोपाददते -इति तेषां परिस्पन्दनम्, सांख्यतत्त्वकौमुदी, कारिका 10 31. प्रकृतिक्षोभात् सृष्टिश्रवणेन प्रकृतेरपि कर्मवत्तया.... सांख्यसूत्र 1/24 पर प्रवचनभाष्य 32. परिणामलक्षणया तु क्रिया सक्रियौ एव, अन्यथा वस्तुत्वविरोधात्, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक- 5/7
द्रव्यार्थिकगुणभावे पर्यायार्थिकप्राधान्याद् सर्वे भावा: उत्पादव्यय दर्शनात् सक्रिया अनित्याश्च,
राजवार्तिक- 5/7/25 33. से आयावाई, लोयावाई, कम्मावाई, किरियावाई ,आयारो, 1/5 34. द्र. धवला- 9/4,1, 45/203, 9/4, 1, 45, 207, 1/1, 1, 2/107,
गोम्मटसार, कर्मकाण्ड- 884-885, 877, तत्त्वार्थराजवार्तिक- 1/20/12 35. तत्र न कर्तारं विना क्रियासम्भवः इति तामात्मसमवायिनीं वदन्ति, तच्छीलाश्च ये ते क्रियावादिनः।
ते पुनरात्मादि-अस्तित्वप्रतिप्रत्तिलक्षणाः,नन्दी सूत्र, हरिभद्रीयवृत्ति, पृ. 100 36. द्र. भगवई, 9/156-234, ‘क्रियमाण कृत' का समर्थन
आचार्य अकलंक-कृत राजवार्तिक, 1/33/7)।
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2008
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