Book Title: Tulsi Prajna 1994 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ (ड) मुनि (महाव्रती)-संसार की मोहान्धकारता एवं दुःखरूपता से खिन्न होकर राजा रत्नपाल राजर्षि रत्नपाल बन गया। उसकी प्रियतमा उसे वन-वन खोजती चलती है। किस वृक्ष से उसका पता नहीं पूछती ? अन्त में निराश होकर गिरती है। मोहभङ्ग होता है तो एक मुनि का दर्शन होता है-वही मुनि उसका पूर्व प्रियतम था, अब वास्तविक प्रियतम था। यहां मुनि का दर्शन उपदेशक के रूप में होता है। रत्नवती के सामने संसार की दुःखरूपता को प्रतिपादित करते हुए मुनि रत्नपाल का बिम्ब रमणीय बन पड़ा है-- यत्साम्राज्यं मद्देशि प्राज्यमासीत्, ___ तदुखानां खानिरद्यावभाति । योऽसौ पन्थादुर्घटश्चेत्यकि, तत्सारल्यं साम्प्रतं चावलोके ॥१५ मंत्री-कृत स्तुति में स्थान, पान और स्नान के विषय में परम संतुष्ट मुनि का सुन्दर बिम्ब दृश्य है लालसया वेष्टित आत्मासीत्, परितो वल्लर्येव पुलाकी । संतोषं भज सद्य स एव, . स्थाने पाने सिचि चाप्यतुलम् ॥ __ अन्त में अपनी आत्मा में पूर्णतया स्थित मुनि रत्नपाल का दर्शन होता है---- स्वात्मानं विशदीकरोति, ___ सततं राजर्षिरप्यात्मना ।" २. राजकुमारी-श्रीपत्तनपुर के राजाधिराज की कन्या इस चरित्तकाव्य की नायिका है । उसके अनेक रूपों का सुन्दर-बिम्बन विवेच्य चरितकाव्य में हुआ है--- (क) आसक्ता--प्रथम सर्ग में उसका दर्शन एक उन्नत-यौवना एवं रत्नपाल-आसक्ता के रूप में होता है। जो दिव्य-युवति रत्नपाल के गले में माला डालकर उसकी स्तुति करती है वह कुमारी रत्नवती ही है।८ (ख) द्वितीय-सर्ग में स्मितानना बाला का कमनीय रूप चर्व्य हैस्मितानना कर्णितपूर्ववार्ते । वारब्ध कश्चिद् वचनाभिलापम् ॥" इसके बाद कुमार से वह अपनी दर्द-कथा सुनाती है। उसके मामा ने ही उसके पिता को हराकर, राज्य छीनकर, अधिकार कर लिया है। इस प्रसंग का कारुणिक चित्रण करते हुए राजकुमारी का बिम्ब अत्यन्त हार्द बन गया है २६८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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