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ये सात स्वर सरिगम, सारेगम अथवा सर्गम ऐसे संक्षिप्त अक्षरोंसे पहचाने जाते है। इन स्वरोके ग्राम मूर्छनाएँ तथा रंग, ऋतुएँ, रस,अलंकार आदि अनेक बातोका वर्णन जैन आगमो तथा प्राचीन साहित्यकारोंने संगीतादिके ग्रन्थोंमें दिया है।
संगीत शास्त्रियोंने जीवनिश्रित तथा अजीवनिश्रित स्वरोकी बात की है। अर्थात किस जीवकी आवाज किस स्वरके समान है और कैसा अजीववाद्य कैसे स्वर-ध्वनिको व्यक्त करता है? इसके लिए जीवपक्षमें पशु-पक्षी निश्रित किये है। यहाँ दी गई मनोरम पट्टीमें संगीतकार तानसेन द्वारा बनाए गए सवैयेके आधार पर उन-उन स्वरों पर पशु-पक्षी दिखलाए है। इनमें क्रमशः मयूर, चातक, बकरा, क्रौञ्च, कोयल, मेहक तथा
हाथी है। यद्यपि 'अनुयोगद्वार की टीकामे तथा अन्यत्र पशु-पक्षियोंके विकल्प बताए है। क्योंकि एक ही स्वर अनेक जीवोंसे भी व्यक्त हो सकता है। ८.बारह राशियों यह पड़ी ज्योतिष शास्त्रसे संबंधित है। इसमें बारह राशियोंको उनके साथ सम्बन्ध रखनेवाले अक्षरोंके साथ दिखाया गया है। (ज्योतिष पट्टी) - इन राशियोंके आधार पर प्रत्येक व्यक्तिका त्रैकालिक भविष्य देखा जा सकता है। कैसी अद्भुत बात है? करोडों, अरबों ही नहीं किन्तु सब
मनुष्यों का भविष्य देखने की केवल ये ही बारह राशियाँ। इन बारहों में केवल असंख्य जीव ही नहीं अपितु अचेतन पदार्थों का भविष्य भी छिपा
रहता है। विश्वके चराचर भावों के शुभाशुभ प्रभावों के लिए ये राशियाँ महत्त्वपूर्ण है। ९. अष्टप्रकारी यह पट्टी तीर्थकर देव की मूर्तिकी सेवाभक्ति के रूपमें की जानेवाली (अंग और अग्र शब्द से पहचानी जानेवाली) अष्टप्रकारी पूजा - पूजा किस प्रकार और किस क्रमसे होती है, यह दिखाने के लिए दी गई है। बाई ओर से प्रथम जलपूजा, बादमें क्रमशः चन्दन, पुष्प
धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य अर्थात् स्वस्तिक पर दोनों हाथों से किसी भी तरहकी मिठाई-मिष्ट वस्तु रखना बह, और आठवी फल पूजा अर्थात् चावल द्वारा चित्रित सिद्धशिला पर दोनों हाथों से मोक्षफल की याचना करते हुए फल अर्पण करना। प्रारम्भ की तीन पूजाएँ 'अंगपूजा' होनेसे गर्भगृह में की जाती है और शेष पूजा 'अग्रपूजा' होनेसे गर्भगृह के बाहर प्रभु के समक्ष मंडपमे करनी होती है।
आठों पूजाएँ करते हुए जो भावनाएँ की जाती है उनके दोहे पृथक् पृथक् आते है। लोग उन्हें बोलकर आठों पूजाएँ करते है। इस पूजाको दव्य पूजा कहते है। आठवी फल पूजा पूरी करनेके पश्चात् पूजक श्रावक-श्राविका चैत्यवन्दन तथा स्तोत्र स्तवन प्रार्थनादि करते हुए भगवान की
भावपूजा में तल्लीन होते है। जैन साधु-साध्वी समुदाय तो अपने आचारके अनुसार केवल स्तुति-प्रार्थनादि रूप भावपूजा ही करते है। १०. भगवान श्रमण भगवान महावीर के पाँचों कल्याणक तथा अन्य विशिष्ट प्रसंगोंसे युक्त यह पट्टी है।
महावीर के इसमे क्रमशः 'च्यवन, जन्म, देवपरीक्षा, दीक्षा, चंडकौशिक का उपदव, कानमें लकडीकी सलाखें, चन्दनबाला द्वारा दी गई भिक्षा, केवलज्ञान की जीवन प्रसंग-प्राप्ति और मोक्ष' इस तरह इसमें नौ प्रसंग चित्रित है। इसका शेष विशेष वर्णन ३५ चित्रों के परिचयमे आ जाता है, इसलिए यहाँ विशेष नहीं
लिखा है। ११. टिप्पणी नृत्य- यह पट्टी गुजरातके टिप्पणी नृत्यकी है। गुजरात में घर की छत की नई फर्श को मजबूत करनेके लिए टिप्पणी नृत्य किया जाता है। उस समय (गुजराती पद्धति) श्रमिक लोग चित्र दिखाए अनुसार तालबद्ध ठुमके के साथ, गीत गाते हुए श्रमपूर्वक किये जानेवाले नृत्योत्सवों से आनंद मनाते है। यह चित्र
धार्मिक न होते हुए भी गुजरात की प्रसिद्ध कला होनेके कारण दिया गया है। १२.जीवविचार - अखिल विश्व बहमांड में ८४ लाख" जीवयोनियों है। इन योनियों में अनन्त जीवों के जन्म-मरण होते रहते है। इन्हीं ८४ लाख जीवयोनियाँ
अथवा संसारवर्ती अनन्त जीवों की ५६३ भेदोंके द्वारा इस चित्रपट्टीमे माँकी करवाई है। इन सभी जीवों का समावेश स्थावर और त्रस इन दो नामोसे प्रसिद्ध प्रकारोंमें भी होता है। यहाँ दोनों प्रकारों द्वारा जीवभेदों के चित्र बताए गये है। स्वेच्छापूर्वक गति करनेमें जो असमर्थ है उन्हे स्थावर' तथा स्वेच्छापूर्वक गति करनेमे जो समर्थ है वे 'त्रस' कहलाते है। स्थावर प्रकार में एकेन्द्रिय-एक इन्दियवाले जीवोंका समावेश होता है, और पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति इनके प्रकार है। जैन दर्शनकी मान्यता है कि पृथ्वी से जो मिट्टी निकलती है, वह एकेन्द्रिय जीवोका शरीर है। इसी लिए जैन ग्रन्थ इसे 'पृथ्वी-काय' कहते है। पानी स्वयं जीवोंका शरीर" है। इसलिए जैनग्रन्थ इसे 'अफ्काय' नामसे परिचित कराते हैं। इस प्रकार काष्ठ, विद्युत् आदिसे प्रकट होनेवाला प्रकाश 'अग्नि-तेजस्' नामसे बतलाए गए शरीर" ही है। इन सभी जीवोंको केवल (उस उस जन्म के अनुरूप) एक शरीर ही होता है। शेष चारों इन्द्रियों से एक ही नहीं होती। इसी लिए उसे उसके विषयोंका ग्रहण भी नहीं होता।
कोयल
३९, मूल स्वरूप 'सरि था अथवा 'सारे' इसके निर्णय पर न जाते हुए एक बात कहता हूँ कि 'शिशुपालवय' सर्ग १, श्लोक १० की १४ वी शतीकी मल्लिनाथी टीका तया शंकराचार्य कृत(?) श्यामला नवरत्न मालिका के सातवें श्लोक के प्रथम चरणमे दोनों स्थलों पर 'सरि ऐसा उल्लेख है। १६ वी शती के मराठी कवि बीडकरने 'सारी' ऐसा उल्लेख किया है। किन्तु अभी तो सारे' वर्ण सर्वत्र रूठ है। ४०. स्वरोकी जीवनिश्रित समानतामे उल्लिखित मतांतरीका कोष्ठक। तान अमरकोश अनु द्वार तान अमरकोश
अनुदार सा- मयूर
गाय मयूर कुक्कुट - क्रौञ्च कौञ्च
क्रौञ्च रे-घातक
चातक वृषभ चातक प- कोयल
कोयल
कोयल ग-बकरा (अज) बकरा
बकरा
4- मेंढक
घोडा घोडा
सारस नि-हाबी
हाथी हाथी
हाथी. १. जैसे जीवनिश्चित स्वर बतलाए है उसी प्रकार अजीव निश्रित मृदंगादि बाघों की बनि के साथ भी स्वरों की तुलना की जाती है।
२. कोयलसे नर कोकिल समझना चाहिए। ४१. ८४ लाख योनिसे क्या तात्पर्य है? जीव अनन्तानन्त है, किन्तु उनका वर्गीकरण करके उसका ८४ लाख में समावेश किया गया है। इस वर्गीकरण का कोई आधार भी है क्या? हाँ। जो जो योनि अर्थात् उत्पत्तिस्थान, समान वर्ण, समान गंध, समान रस-स्वाद और समान स्पर्श-आकारवाले हों वह समूह एक प्रकार अथवा वर्ग माना जाता है। इस प्रकार सर्वों ने समस्त योनियों की समानताओं को जान से जानकर उनका वर्गीकरण करते हुए उन्हें उक्त संख्या प्राप्त हुई। इसीलिए '८४ लाख का संसार' कहलाता है। किस-किस प्रकार में कितनी कितनी योनि संख्या है? इसके लिए जैनों के 'पंच प्रतिक्रमण' सूत्रोंमे आनेवाले 'सात लाख' नामक गुजराती सूत्र पाठमे जानकारी दी गई है। ४२, ५६॥ भेदोकी विस्तृत जानकारीके लिए 'जीव विचार' पुस्तक देखें। ४३. पानी-जल मात्र सजीव है। दिखाई देनेवाला पानी यह जलीय जीवोका एक प्रकारका शरीर ही है। इसमें उत्पन्न होनेवाले 'पोरा' आदि जो जीव है वे बस है। और ये जीव पानीसे अलग है। इसीलिए जैनसाधु जीवहिसा से बचने के लिए बावडी, कुआँ तथा तालाब के जलका स्पर्श नहीं करते है और उसे पीते भी नहीं है।
४. अग्निका प्रकाश यह भी स्वयं सूक्ष्म अग्निके जीवों का शरीर ही है। इसीलिए यह सजीव है तथा इन जीवोकी हिंसा से बचनेके लिए जैन साधु अग्निका स्पर्श नहीं करते और न उसका उपयोग ही करते है
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