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94 : तत्त्वार्थ सूत्र : आम्रव तत्त्व
• भूतव्रत्यनुकम्पा दानम् सरागसंयमादियोगः क्षान्ति: शौचमिति
सद्वेद्यस्य ।।१३।। प्राणियों एवं व्रतियों पर अनुकम्पा, दान, सराग संयमादि (सराग
संयम, संयमासंयम, अकाम निर्जरा एवं बालतप) योग, क्षान्ति - क्रोध शमन, तथा शौच - लोभ शमन शातावेदनीय कर्म-आश्रव के कारण हैं। (१३)
४. मोहनीय कर्मास्रव के हेतु - • केवलिश्रुतसङ्घधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ।।१४।।
केवली, श्रुत (तीर्थंकर भाषित उपदेश), संध (साधू, साध्वी, श्रावक,
श्राविका रूप चतुर्विध संध), धर्म (अहिंसा, संयम और तप रूप), एवं देव (अरिहन्त और सिद्ध) का अवर्णवाद (निंदा) दर्शनमोहनीय-कर्म के आश्रव (बन्ध हेतु) हैं। (१४)
• कषायोदयात्तीवात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य ।।१५।।
कषायोदय से होनेवाले तीव्र-आत्म-परिणाम चारित्र-मोहनीय कर्म के
आश्रव (बन्ध हेतु) हैं। (१५)
५. आयुष्य कर्मास्रव के हेतु - • बह्वारम्भपरिगृहत्वं च नारकस्यायुष: ।।१६।। बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह ये नरक-आयुष्य के बन्ध के कारण
(आनव) हैं। (१६)
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