________________
154: तत्त्वार्थ सूत्र : संवर व निर्जग
• वितर्कः श्रुतम् ।। ४५ । । • विचारोऽर्थव्यंजनयोगसंक्रान्ति: ।। ४६।। वितर्क का अर्थ श्रुत से है। विचार का अर्थ है - अर्था, व्यंजन ब योग की संक्रान्ति। (४५-४६)
वर्द्धमान निर्जरा - • सम्यग्दष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमो
हक्षपकक्षीणमोहजिना: क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जरा: ।। ४७।। (अविरत) सम्यग्दष्टि, (देशविरत) श्रावक, विरत, अनन्तानुवन्धि
(कषाय के) विसंयोजक, दर्शनमोहक्षयक, (दर्शनमोह) उपशमक, क्षपक, उपशान्तमोह, क्षीणमोह ओर जिन ... इन दस के अनुक्रम से असंख्यात गुणी कर्मनिर्जरा होती है। (४७)
निर्ग्रन्थ - • पुलाकबकुशकुशीलनिर्गन्थस्नातका निर्गन्था । । ४८ । । पुलाक, बकश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ... ये पांच प्रकार के
निर्ग्रन्थ होते हैं। इनका वर्णन निम्नानुसार है: -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org