Book Title: Tattvartha sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, D S Baya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 199
________________ 152 : तत्त्वार्थ सूत्रः संवर व निर्जरा • उपशान्तक्षीणकषाययोश्च । ।३८।। धर्मध्यान प्रमत्तसंयत, उपशान्तमोह व क्षीणाकषाय गणस्थानों में संभव है। (३८) शुक्लध्यान • शुक्ले चाह्ये पूर्वविदः ।। ३९।। • परे केवलिन: ।।४०।। • पृथक्त्वैकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवृत्तीनि । । ४१ । । • तत्त्यैककाययोगायोगानाम् ।।४२ । । पहले के दो प्रकार के शुक्लध्यान पूर्वधर साधकों को होते हैं। बाद के दो केवल केवलियों को होते हैं। चार प्रकार के शुक्लध्यान हैं - पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती तथा व्युपरत- क्रियानिवृत्ति। ये शुक्लध्यान अनुक्रम से तीनयोग वालों, एकयोगवालों, काययोगवालों तथा अयोगी को होते हैं। (३६-४२) • एकाश्रये सवितर्के पूर्वे ।। ४३।। • अविचारं द्वितीयम् ।।४४।। पहले के दो (शुक्लध्यान) एकाश्रय बाले व सवितर्क होते हैं। (पहला सविचार तथा) दूसरा अविचार होता है। (४३-४४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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