Book Title: Tattvartha sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, D S Baya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 197
________________ 150 : तत्त्वार्थ सूत्रः संवर व निर्जरा • वेदनायाश्च ।। ३२।। विपरीतम् मनोज्ञानाम् ।। ३३।। • निदानम् च ।। ३४।। • तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् ।। ३५।। २. दुःख से छुटकारा पाने के लिये सतत चिन्ता करना दूसरा आर्तध्यान है। ३. प्रिय वस्तु से वियोग हो जाने पर उसे पुनः प्राप्त करने की सतत चिन्ता करना तीसरा आर्तध्यान है। ४. अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति के लिये सतत चिन्ता करना चोथा आर्तध्यान है। ये चारों आर्तध्यान अविरत, देशविरत व प्रमत्तसंयत गुणस्थान वालों के ही होते है। (३१-३५). रोद्रध्यान - • हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदशविरतयो: ।। ३६।। हिंसा, असत्य, चोरी व विषयरक्षण के लिये सतत चिंतित रहना रोद्रध्यान है । (३६) धर्मध्यान - • आज्ञाऽपायविपाकसंसनिविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य ।। ३७।। आज्ञा, अपाय, विपाक, और संस्थान की विचारणा के लिये एकाग्रचित्त होना धर्मध्यान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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