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148 : तत्त्वार्थ
सूत्र
वाचनाप्रच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः । । २५ । र बाह्याभ्यन्तरोपध्योः । २६ ।।
ये
वाचना, प्रच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय व धर्मोपदेश पाँच भेद हैं । बाह्य और आभ्यन्तर उपधि का त्याग के भेद हैं । (२३-२६)
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: संवर व निर्जरा
ध्यान
• उत्तमसंहनन स्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् ।।२७।।
उत्तम - संहनन वाले साधक का एकाग्र - चिन्ता (एक विषय में चित्त वृत्ति को) निरोध (स्थापित करना) ही ध्यान है । (२७)
आ मुहुर्तात् ।।२८
( वह ध्यान ) एक मुहुर्त तक का होता है । ( २८ )
• आर्तरौद्रधर्मशुक्लानि ।।२९।।
स्वाध्याय के ये व्युत्सर्ग
• परे मोक्षहेतू ।। ३० ।।
ध्यान चार प्रकार के होते हैं
आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान । ( उनमें से ) बाद के दो मोक्ष के कारणरूप हैं । (२६-३०)
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आर्तध्यान
• आर्तममनोज्ञानाम् सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः ।। ३१ ।। चार प्रकार के आर्त-ध्यान इस प्रकार हैं
अमनोज्ञ वस्तु से छुटकारा पाने के लिये सतत चिन्ता करना पहला आर्तध्यान है । (३१)
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