Book Title: Tattvartha sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, D S Baya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

Previous | Next

Page 193
________________ 146 : तत्त्वार्थ सूत्र : संवर व निर्जरा तप - • अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायद क्लेशा बाह्यं तपः ।।१९।। • प्रायश्चितविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ।।२०।। अनशन, अवमोदर्य (उनोदरी), वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशयनासन व कायक्लेश - ये छः बाह्य तप हैं । प्रायश्चित, विनय, वेयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग व ध्यान ये छः आभ्यन्तर तप हैं । (१६-२०) • नवचतुर्दशपचद्विभेदं यथाक्रमम् प्राग्ध्यानात् ।।२१।। ध्यान से पहले के पाँच आभ्यन्तर तपों के क्रम से नो, चार, दस, पाँच व दो भेद हैं। (२१) । आलोचनाप्रतिकमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारोप स्थापनानि ।।२२।। • ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः ।।२३।। • आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्षकालानगणकुलसंघसाधुसमनो ज्ञानम् ।। आलोचना, प्रतिक्रमण, आलोचना व प्रतिक्रमण दोनों, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार, व उपस्थापन - से नो प्रकार के प्रार्याश्चत हैं। विनय के चार भेद हैं - ज्ञान-विनय, दर्शन-विनय, चारित्र-विनय, व लोकोपचार-विनय। वैयावृत्त्य या सेवा के दस भेद हैं - आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शेक्ष, ग्लान, गण, कुल, संध, साधु और समनोज्ञ की सेवा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242