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110 : तत्त्वार्थ सूत्र : व्रत और भावनाएँ
• अणुव्रतोऽगारी ।। १५ ।।
• दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिक पौषधोपवासोपभोगपरिभो-परिमाणाऽतिथिसंविभागवतसंपन्नश्च ।। १६ ।।
• मारणान्तिकीं संलेखनां जोषिता ।।१७।।
ग्रहस्थ-व्रती अणुव्रतधारी होता है ।
वह दिग्विरति, देशविरति, अनर्थदण्ड- विरति (रूप तीन गुणव्रतों तथा ), सामायिक, पौषधोपवास, उपभोग-परिभोग- परिमाण, व अतिथिसंविभाग (रूप चार शिक्षाव्रतों) से भी संपन्न होता है ।
तथा वह मारणान्तिक संलेखना का आराधक भी होता है। (१५-१७)
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