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__ तत्वार्थसूखे सति द्वीन्द्रियादारभ्याऽयोगि केवलिपर्यन्तस्य त्रसत्वप्रतिपादकाऽऽगमस्य विरोधापत्तिः स्यात् तस्मात् कर्मोदयापेक्षमेव त्रस-स्थावरत्वम् न तु-व्युत्पत्तिनिमित्तलभ्यमितिभावः । त्रसे-द्वादशविधोपयोग संभवेनाऽभ्यर्हितत्वात् प्रथमं तस्योपादानम् । स्थावरे तु त्रिविधस्यैवोपयोगस्य सद्भावेन तस्याऽभ्यहिंतत्वाऽभावेन पश्चादुपादानं कृतमिति बोध्यम् । ___ उक्तञ्च-स्थानांगे २ स्थाने १ उद्देशके ५, सूत्रे 'संसारसमावन्नगा तसा चेव थावरा चेव' इति । संसारसमापन्नकास्त्रसाश्चैव-स्थावराश्चैव इति ।
जीवाभिगमे १ प्रतिपत्तौ २७–सूत्रे चोक्तम् ‘से किं तं ओराला तसा पाणा-३, चउव्विहा पण्णत्ता तं जहा-बेइंदिया, तेइंदिया चउरिदिया पंचेंदिया'-इति । अथ किं ते उरालाः त्रसाः प्राणाः ३ चतुर्विधा प्रज्ञप्ताः तद्यथा-द्वीन्द्रियाः त्रीन्द्रियाः चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाः इति।सूत्र-५॥
मूलसूत्रम्-"तं दुविहा सुहमा-बायरा य-" सू० ६॥ छाया-तद् द्विविधाः, सूक्ष्माः बादराश्च-" ॥सू० ६॥
दीपिका-पूर्वसूत्रे-त्रस-स्थावरभेदेन संसारिणो जीवा द्विविधा भवन्तीति प्रतिपादितम्-सम्प्रति-तेषामेव संसारिजीवानां पुनः प्रकारान्तरेण द्वैविध्यं प्रतिपादयितुमाह-"तं दुविहा, सुहमा-बायरा य" इति । ते खलु संसारिणो जीवाः पुन र्द्विविधाः ।
तद्यथा-सूक्ष्माः बादराश्चेति, तत्र-स्नेहसूक्ष्म-पुष्प-सूक्ष्म-प्राण्युत्तिङ्ग-पनक-बीज-हरियदि यह मान लिया जाय कि जो गमन करे सो त्रस और जो स्थितिशील हो, वह स्थावर कहलाता है तो आगम से विरोध होगा, क्योंकि आगम में द्वीन्द्रिय से लेकर अयोगीकेवली पर्यन्त के जीवों को त्रस कहा है । अतएव त्रसत्व कर्मोदय की अपेक्षा से ही स्वीकार करना चाहिए, व्युत्पत्तिनिमित्त की अपेक्षा से नहीं।
त्रस जीवों में बारहों उपयोग पाये जा सकते हैं, अतएव प्रधान होने के कारण सूत्र में उनका निर्देश पहले किया गया है । स्थावर जीवों में तीन ही उपयोग होते हैं, अतएव वे प्रधान नहीं हैं । इन कारण उनको बाद में ग्रहण किया है । स्थानांगसूत्र के द्वितीय स्थान प्रथम उद्देशक के ५ वें सूत्र में कहा है- संसारसमापन्न जीव दो प्रकार के होते हैं-त्रस और स्थावर ।
__ जीवाभिगमसूत्र की प्रथम प्रतिपत्ति के २७ वें सूत्र में कहा है -- 'उदार-स्थूल त्रस प्राणी कितने प्रकार के हैं ? उत्तर-चार प्रकार के हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ॥५॥
मूलसूत्रार्थ-तं दुविहा मुहुमा बायरा य' इत्यादि ।६। संसारी जीव पुनः दो प्रकार के हैं-सूक्ष्म और बादर ॥६॥
तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में संसारी जीवों के दो भेद-त्रस और स्थावर बतलाये जा चुके हैं, अब उन्हीं संसारी जीवों के प्रकारान्तर से दो भेद बतलाये जाते हैं
संसारी जीव पुनः दो प्रकार के हैं—सूक्ष्म और बादर ।