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दिपिकानियुक्तिश्च अ० १
नवतत्वनिरूपणम् २१ कर्मोदयात् परिस्फुटसुख-दुःखेच्छा-द्वेषादिलिङ्गास्त्रसा उच्यन्ते । स्थावरनामकर्मोदयात् पुनरपरिस्फुटसुख-दुःखादि लिङ्गाः स्थावरा व्यपदिश्यन्ते । द्वीन्द्रियादयो देवपर्यन्तास्त्रसा उच्यन्ते, एकेन्द्रियाः पृथिवीकायिकादिका वनस्पतिकायिकपर्यन्ताः पञ्च स्थावराः कथ्यन्ते । अत्र सुख ग्रहणार्थे प्रथमं त्रसाभिधानं कृतम् तेषां स्पष्टलिंगत्वात् । चकारेण तदुभयेषां परस्परोपसंक्रमः सूच्यते । तथा च-त्रसाः स्थावरेषुःस्थावराश्च त्रसेषु मृत्वोपजायन्ते । इत्यवगन्तव्यम् । तदुभयेषामनेकत्वसूचनार्थम् । सूत्र ॥५॥
नियुक्तिः--पूर्वसूत्रे संसारि-मुक्तभेदेन जीवानां द्वैविध्यं प्ररूपितम् सम्प्रति-संसारिणां प्रथमोपात्तानां भेदं प्रतिपादयितुमाह-'संसारिणो दुविहा तसा थावरा य' इति ।
संसारिणो जीवाः पुनर्द्विविधाः तद्यथा-त्रसाः, स्थावराश्च । तत्र-त्रसनामकर्मोदयवशवर्तिनो जीवास्त्रसा उच्यन्ते । एवम् स्थावरनामकर्मोदयवशवर्तिनो जीवाः स्थावरा उच्यन्ते, तत्र द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय प्रभृत्ययोगिकेवलिपर्यन्ता जीवास्त्रसा अवसेया ।
स्थावरास्तु-पृथिवीकायाऽप्काय-तेजस्काय वायु-काय-बनस्पतिकायरूपा एकेन्द्रियाः पञ्च विधा बोध्याः । एवञ्च त्रसनामकर्मोदय-स्थावरनामकर्मोदयाऽपेक्षमेव त्रसस्थावरत्वं बोध्यम् न तु त्रस्यन्तीति त्रसाः स्थितिशीलाः स्थावरा इति व्युत्पत्या चलनाचलनापेक्षं त्रस-स्थावरत्वम् । तथा वर । जो जीव त्रस नामकर्म के उदय से स्पृष्ट सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि से युक्त हैं, वे त्रस कहलाते हैं । स्थावर नामकर्म के उदय से जिन जीवों का दुःख आदि का अनुभव अस्पृष्ट होता है, वे स्थावर कहे जाते हैं ।
द्वीन्द्रिय से प्रारंभ करके देवपर्यन्त सभी जीव त्रस हैं। पृथ्वीकायिकों से लेकर वनस्पति कायिक के एकेन्द्रिय जीव स्थावर कहलाते हैं । यहाँ सुगमता से समझने के लिए पहले त्रस ग्रहण किया है, क्योंकि उनमें जीव के लक्षण सुख आदि स्पष्ट प्रतीत होते हैं । 'च' शब्द के प्रयोग से यह सूचित किया गया है कि ये दोनों प्रकार के जीव बदलते रहते हैं, अर्थात् त्रस जीव मरकर स्थावर में और स्थावर जीव त्रसों में उत्पन्न हो जाते हैं। बहुवचन का प्रयोग करके यह ध्वनित किया गया है कि त्रस जीव भी बहुत हैं और स्थावर भी बहुत हैं ।।५॥
तत्त्वार्थनियुक्ति इससे पहले वाले सूत्र में संसारी और मुक्त के भेद से जीवों के दो प्रकार बतलाए थे । यहाँ प्रथम निर्दिष्ट संसारी जीवों के भेद बतलाने के लिए कहते हैं-संसारी जीव दो प्रकार के हैं-त्रस और स्थावर । जो जीव त्रसनाम कर्म के वशीभूत हैं, वे त्रस और जो स्थावर नामकर्म के अधीन हैं वे स्थावर कहलाते हैं । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय आदि से लेकर अयोगि केवली पर्यन्त त्रस जीव हैं।
पृथिवीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, ये पाँच प्रकार के एकेन्द्रिय जीव स्थावर हैं । इस प्रकार त्रसत्व और स्थावरत्व त्रसनामकर्म और स्थावर नामकर्म के उदय से होता है । चलने और न चलने पर त्रस स्थावरपन निर्भर नहीं है ।