Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 10
________________ * सुकृत अनुमोना * श्रुतसेवी कार्यवाहक गण, आदिनाथ जैन ट्रस्ट, चेन्नई योग्य धर्मलाभ संस्था द्वारा ज्ञान पिपासुओं हेतु तत्त्वार्थ सूत्र प्रकाशित किया जा रहा है यह जानकर अतीव आनंद हुआ। पुस्तक तैयार करके प्रकाशित करने से भी ज्यादा महत्त्व का काम जो यह संस्था कर रही है, वह है भारतभर में छोटो-छोटे केन्द्रों तक अभ्यासुओं तथा जिज्ञासुओं तक यह साहित्य पहुँचाना एवं पाठ्यक्रम की तरह चला कर उसकी परीक्षा लेना एवं उत्तीर्ण पात्रों को योग्य प्रोत्साहन देना ... तत्त्वार्थ सूत्र यह अपने आप में गागर में सागर समान है, मूल रूप से इतना छोटा होते हुए भी अर्थ की गहनता अमाप है, एक तरह से जैन विश्व कोश है, यह ग्रंथराज चारों ही सम्प्रदायों में समान रूप से मान्य होने के कारण इस ग्रंथ की महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस ग्रंथ में प्रतिपादित अणुविज्ञान के रहस्यों को देख कर आज का अणुविज्ञान भी स्तब्ध रह जाता है। ज्ञान विज्ञान का भंडार है यह सूत्र इतना ही नहीं हमारे वर्तमान जीवन के सारे दुखों का समाधान है इस सूत्रराज में प्रथम सूत्र में ही सारे निदान व समाधान समा गए है देखने की दृष्टि विकसित करनी होगी। मैं साधुवाद देता हूँ श्री मोहनजी आदि सारी सन्निष्ठ टीम को, एवं डॉ. निर्मलाजी को उनके अनवरत प्रयत्नों के लिए प्रस्तुत प्रकाशन का मैं तहेदिल स्वागत करता हूँ और आशा करता हूँ कि आत्मार्थियों के आत्मकल्याण का यह पुष्टालंबन बनेगा पाठकगण को भी अंतर के आशीर्वाद सह ... पंन्यास अजयसागर private

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