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उपाध्याय श्रीचारित्रनन्दी की गुरुपरम्परा एवं रचनाएं
-महोपाध्याय विनयसागर
खरतरगच्छ के गणनायक जिनसिंहसूरि के पट्टधर जिनराजसूरि हुए। वे आगम साहित्य, काव्य और न्याय के बेजोड विद्वान् थे। जिनराजसूरि की ही शिष्य परम्परा में उपाध्याय निधिउदय हुए। सम्भव है इनका बाल्यावस्था का नाम नवनिधि हो। इन्हीं के शिष्य उपाध्याय चारित्रनन्दी हुए जो चुन्नीजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे| चारित्रनन्दी जैन, न्यायदर्शन, काव्य, व्याकरण और पूजा साहित्य के उद्भट विद्वान् थे। उनके समय में काशी में जैन विद्वानों में इनका अग्रगण्य स्थान था। इनका साहित्यसृजन काल १८९० से लेकर १९१५ तक है।
खरतरगच्छ साहित्य कोश के अनुसार चारित्रनन्दी की निम्न रचनाएं प्राप्त होती हैं:
१. स्याद्वादपुष्पकलिकाप्रकाश स्वोपज्ञ टीकासह, न्यायदर्शन, संस्कृत, १९१४, अप्रकाशित, हस्तप्रत(१)सिद्धक्षेत्रसाहित्यमन्दिर, पालीताणा, (२) जिनयशसूरि ज्ञानभंडार. जोधपुर
२. प्रदेशी चरित्र, भाषा-संस्कृत, सर्ग ९, रचना संवत् १९१३, स्थान- स्तम्भतीर्थ। प्रशस्ति पद्य
श्री सङ्घाग्रे च [व्या]ख्यानं विशेषावश्यकागमम्। (९.४३)
अर्थात् संघ के समक्ष विशेषावश्यक आगम का व्याख्यान देते थे। अप्रकाशित, हस्तप्रत- श्री पुण्यविजयजी संग्रह, एल.डी. इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद, क्रमाङ्क ४५९३
३. सद्ररत्नसार्द्धशतक, प्रश्नोत्तर, संस्कृत, १९०९ इन्दौर, अप्रकाशित, हस्तप्रत- आचार्यशाखा ज्ञानभंडार, बीकानेर, कांतिसागरजी संग्रह
४. श्रीपालचरित्र, कथा चरित्र, संस्कृत, १९०८, अप्रकाशित, हस्तप्रत-तकान्तिविजय संग्रह, बडौदा १९१०, स्वयंलिखित
५. चतुर्विंशति जिन स्तोत्र, स्तोत्र, संस्कृत, १९वीं, अप्रकाशित, हस्तप्रत- खरतरगच्छ ज्ञानभंडार, जयपुर
६. प्रश्नोत्तररत्न, प्रश्नोत्तर, हिन्दी, २०वीं, अप्रकाशित, हस्तप्रत- सदागम ट्रस्ट, कोडाय
७. चौवीसी-जिन स्तवन चौवीसी, चौवीसी साहित्य, हिन्दी, २०वीं, अप्रकाशित, हस्तप्रत - खजांची संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., जयपुर
८. इक्कीसप्रकारी पूजा, पूजा, प्राचीन हिन्दी, १८९५ बनारस, अप्रकाशित, हस्तप्रत- विनयसागर. प्रतिलिपि, हरिसागरसूरि ज्ञानभंडार, पालीताणा
९. एकादश अङ्ग पूजा, पूजा, हिन्दी, १८९५ अप्रकाशित, हस्तप्रत- नाहर संग्रह, कलकत्ता
१०. चौदह पूर्व पूजा, पूजा, हिन्दी, १८९५ अप्रकाशित, हस्तप्रत- नाहर संग्रह, कलकत्ता
११. नवपद पूजा, पूजा, राजस्थानी, २०वीं, अप्रकाशित, उल्लेख, जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ.३३६
१२. पंच कल्याणक पूजा, भाषा-प्राचीन हिन्दी, रचना संवत् १८८९ कलकत्ता, महताबचन्द के आग्रह से। अप्रकाशित, हस्तप्रत- विनयसागर प्रतिलिपि