Book Title: Syadvad Manjari
Author(s): Hemchandracharya, Mallishensuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
३३४
जायंती एगहेलाए || = नवलख्खाणं मज्जे । जायs इक इन्हेगसमती ॥ सेसा पुण एमेवय । विलयं वच्चंति तत्येव ॥ तदेवं जीवोपमर्दहेतुत्वान्न मांसभक्षणादिकमष्टमिति प्रयोगः | २० | अथवा भूतानां पिशाचप्रायाणामेवा प्रवृत्तिस्त एवात्र मांसनक्षणादौ प्रवर्तन्ते । न पुनविवेकिन इति जात्रः । तदेवं मांसन कणादेऽष्टतां स्पष्टीकृत्य यपदेटव्यं तदाह । निवृत्तिस्तु महाफला । तुरेवकारार्थः । तुः स्यानेदेऽवधारणे इति वचनात् । ततश्चंतेच्यो मांसनऋण दिन्यो निवृत्तिरेव म हाफला । स्वर्गापवर्गफलप्रदा । न पुनः प्रवृत्तिरपीत्यर्थः | २१ | त । एव स्थानान्तरे पठितम् | = | वर्षे वर्षेऽश्वमेधेन । यो यजेत शर्त
बे. =॥ एक पुरुषे जोगवेली स्त्रीना गर्भमां एकीवखते उत्कृष्ट नव लाख पंचेंपि मनुष्यो नृत्पन्न याय बे || || ते नव लाखनी मांहेश्री एक अथवा बे साथै उत्पन्न याय बे, अने बाकीना सबला तेमना तेमज नाश पामे बे. II= मांटे एवीरीते जीवहिंसानो हेतु होवाथी मांसमक्षणादिक दूषणरहित नथी, एवो प्रयोग जावो. । २० । अथवा ए प्रवृत्ति तोनी एटले पिशाचप्रायोनी बे, केमके तेजन मांसमां प्रवर्ते छे, पण विवेकीन प्रवर्तता नथी एवो जावार्थ जाणवो. माटे एवीरीते मांसनकादिकनुं उष्टपणुं देखामीने, जेनो उपदेश देवानो बे, ते कहे बे. ते मांसनकादिकथी निवृत्त श्रवं तेज महाफलवालुं बे, महीं 'तु' एवकारना अर्थमां जे. कहनुं बे के 'तु' ने
मां ने निश्चयार्थमां आवे छे. मांटे ते मांसनकादिकोश्री निवृ तिन महाफलवाली एटले स्वर्ग तथा मोकफलने देनारी बे, परंतु प्रवृत्ति कई महाफलवाली नयी । २१ । आयी करीनेज बीजी जगोए कहां बेके, = ॥ जे माणस दरवर्षे सो वर्षसुधि अश्वमेध यज्ञ करे.
ने जे माणस मांसमक्षण करे नही तेन बन्नेने तुल्य फल याय. ॥ =

Page Navigation
1 ... 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428