Book Title: Swayambhustotra Tattvapradipika
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 6
________________ आशीर्वचन महान् तार्किक आचार्य समन्तभद्र का जैनदर्शन के इतिहास में गौरव - पूर्ण स्थान है । उनकी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियों में स्वयम्भूस्तोत्र एक विशिष्ट कृति है, जिसमें चौबीस तीर्थंकरों की तार्किक शैली में भक्तिभाव पूर्वक स्तुति की गई है। इसमें केवल ऋषभादि महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों को स्तुति ही नहीं है, अपितु स्तुति के व्याज से जैनदर्शन के अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्त, स्याद्वाद, भवितव्यता आदि सिद्धान्तों पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है । हर्ष की बात है कि श्री उदयचन्द्र जैन ने स्वयम्भूस्तोत्र की तत्त्वप्रदीपिका नामक व्याख्या लिखी है । इस व्याख्या का मैंने अवलोकन किया है । इसमें आचार्य समन्तभद्र के हार्द को सरल तथा सरस भाषा में अच्छी तरह से स्पष्ट किया गया है । मैं इनकी योग्यता तथा विद्वत्ता से सुपरिचित हूँ । आशा है कि विद्वान् लेखक की यह कृति सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगी । इसके लेखक को मेरा शुभाशीर्वाद है कि वे आप्तमीमांसा -तत्त्वदीपिका और स्वयम्भू स्तोत्र - तत्त्वप्रदीपिका आदि की तरह अन्य कृतियों की भी रचना करें, जिससे धर्म और संस्कृति की सेवा के साथ ही समाज भी उनकी विद्वत्ता से लाभान्वित हो सके । चातुर्मास स्थल तड़ाई (रांची ) बिहार Jain Education International उपाध्याय ज्ञानसागर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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