Book Title: Sutrakritang Skandh 02
Author(s): Kantilal Kapadia
Publisher: Kantilal Kapadia

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Page 145
________________ ८०२ मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता, सुत्तेहि अत्थेहि य निच्छयण्णू । पुच्छिंसुमाणे अणगार एगे, इति संकमाणोण उवेति तत्थ ॥१६॥ ८०३ नाकामकिच्चा ण य बालकिच्चा, रायाभिओगेण कुतो भएणं । वियागरेज्जा पसिणं न वावि, सकामकिच्चेणिह आरियाणं ॥१७॥ ८०४ गंता व तत्था अदुवा अगंता, वियागरेज्जा समियाऽऽसुपण्णे। ___ अणारिया दंसणतो परित्ता, इति संकमाणोण उवेति तत्थ ॥१८॥ ८०५ पण्णं जहा वणिए उदयट्ठी, आयस्स हेउं पगरेति संगं । तउवमे समणे नायपुत्ते, इच्चेव मे होति मती वियक्का ॥१९॥ ८०६ नवं न कुज्जा विहुणे पुराणं, चिच्चाऽमई तायति साह एवं । एत्तावया बंभवति त्ति वुत्ते, तस्सोदयट्ठी समणे त्ति बेमि ॥२०॥ ८०७ समारभंते वणिया भूयगामं, परिग्गहं चेव ममायमीणा । ते णातिसंजोगमविप्पहाय, आयस्स हेउं पकरेंति संगं ॥२१॥ ८०८ वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा, ते भोयणट्ठा वणिया वयंति । वयं तु कामेसु अज्झोववन्ना, अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥२२॥ ८०९ आरंभयं चेव परिग्गहं च, अविउस्सिया णिस्सिय आयदंडा । तेसिं च से उदए जं वयासी, चउरंतणंताय दुहाय णेह ॥२३॥ 134

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