Book Title: Sudrishti Tarangini Author(s): Tekchand Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ विषय पृष्ठ विषय पृष्ठ सेबीसका पर्व ३२---३१८ सुब्बीसा पर्व ३५-३६० कैसा मित्र तजये योग्य है-इतनी समा में, विरोध बचन नहीं पश्चनकाल वर्णन-शुभ भाव बिना. शुम करनी का फल नाहीशुना किन 37 राम है मामा के बांछक जीव कहना-शास्त्राभ्यास ते पसे गुण नहीं भये. तो वह काक शब्द समान है- मरण ते अधिक निद्रा है- दृष्ट जोष के स्वभाव का, हित व कुटुम्बियों को परीक्षा के स्थान-ननव स्थान मैं कौन दृष्टान्त-अपने मावों से ही. रोग को दीचंता होय है-दुख व कौन कौ परिखिये-एक दुख के अनेक उपचार-प्रथम सो घर छोड़े, फिर ससे जाह-किसको छोड़ कर, किसको प्रहण करना रोग मिटता है. पर काल नहीं मिटता- इष्ट वियोग कहां है, कहा नहीं-काल के आगे कोई रक्षक नहीं. एक धर्म रक्षक हैकिस देशवनगर को छोड़ना- स्थानों में लजा नहीं करनी अग्नि भेद तीन -विचादिक भले गुण क, इन्द्रिय-सुख की बांच्या चौबीसको पर्व १६-३३३ ठगे-इष्ट-वियोग के दोय भेद-जोसे परिणाम विषय-कथाय मैं लग है वैसे धर्म में लगें.तो क्या फल होय? कृपण अपने तन पस बल से, निर्बल का भी कार्य सिद्ध होय-हित है. सो बड़ा को लगे है-मिक्षक मांगने के बहाने. घर-घर उपदेश कर हैबल हैन्याय को प्रशंसा अन्याय का फल-अनेक संकट में. केवली मिथ्याष्टियों के उपदेश का अन्तर पूर्व पुण्य सहायक:-ये वस्तु किसी के कार्यकारी नाही. ये पदार्थ परोपकार को ही है-षट् स्थानों में लजा नहीं करिये सत्ताईसा पर्व ३६८-१८ साहस से सर्व संकट मिटे है-दिवेकी जीयों के हास्य के कारण । छ लेश्याओं का स्वरूप-नव-मेद योनि-योनि पत्र कौनतीन स्थान-किसके आदर में दुख व किसके अनादर में सुख- कौन जीवों के शरीर में निगोदिया नाहीं-आठ जाति के जीवों षट् भेद म्लेचा. मला के सात भेद, हितोपदेश से शौच नहीं पले-निमित शान के आमद-ज्ञान के आठ अङ्ग मुनियों के ध्यान के १० स्थान-अलोचना के देश अतिचारपबीसा पर्व ३१४-३४८ दोक्षा के अयोग्य, देश काल इन्द्रिय सुख तें तृप्ति नहीं-दो दुख नकादिक के सहे, तो तप अट्ठाईसबो पर्व ३५-३६२ में क्या दूत है-माया कपाय का फल सबसे पुरा है-धर्म-फल शारण का निमित्त पाय, कर्म अवस्था कथन-मिस्यास्वइन्द्रिय-जनित सूख तें. खोटो गति नाहीं-मुनियों के मोक्ष का तोन भेद आंगुल, तीन प्रकार अक्षर-पर्याप्ति लीन भेद दर्शन दो भेद - उपशम सम्यक्त्व दो भेद, योग स्थान तीन भेदकारण. श्रावक का घर है-वृद्धि, ६त. तन, पाये का फल, धर्म अरुचि के तीन कारण, शल्य के तीन मैद-चार निक्षेपये निमित्त काल समान १-मुनि कहीं नहीं रहे? किनका अलौकिक मान के चार भेद-आबिका के गुण-दत्ति के चार विश्वास नहीं करिये भेद. दण्ड-भेद .Page Navigation
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