Book Title: Sudarshan Charitram
Author(s): Vidyanandi, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 9
________________ - १६ - इस उल्लेख से यह सिद्ध है कि सुदर्शन मुण्ड या सामान्य केबली हए हैं और सामान्य केवलियों के ममयशरण रचना नहीं होती | आठ प्रातिहार्य अवश्य होते है, पर तीन छत्र की जगह एक श्येन पत्र और सिंहासन की जगह मनोहर-भद्रपीठ होता है । नयनन्दि ने अपने सुदसणचरिउ में तथा सकलकीर्ति ने अपने सुदर्शनपरित में उन्हें स्पष्ट रूप से चौबीसवाँ कामदेव और नद्धमान तीर्थकर के समय में होने वाले दश अन्तःकृत्केवलियों में से पांचवा अन्तःकृत्केवली माना है यथा(१) अन्तयड सु केवलि सुष्पसिद्ध, ते दह दह संखए गुणसमिद्ध । रिसहाइ जिणिदह तित्थे ताम, इह होति चरम तित्थयरु जाम ।। तित्थे जाउ कय कम्म हाणि, पंचमु सहि अंतयडणाणि णामेण ! सुदंसणु तहो चरितु पारभिउ अयाणहुँ पबित्तू ।। (२) इय सुविणो यहिं चरिमाणगउ अच्छई । नर बइ हे पसाय पुण्णुवंतु संघच्छइ ।। उक्त दोनों में से प्राग में पांगो माताती होने का सा दूसरे में चरम अनङ्ग अर्थात् अन्तिम कामदेव होने का स्पष्ट निर्देश है । संकलकीति ने दोनों ही रूपों में सुदर्शन को स्वीकार किया है । यथाश्रीवर्द्धमानेदघस्व यो वैश्यकुलखांशुमान् । अन्तकृत्केवली पंचमो बभूवाखिलार्थदृक् ।। १।१४ कामदेवश्च दिव्याङ्गो रौद्रघोरोपसर्गजित् । त्रिजगन्नाथ वन्द्यायः सुदर्शनमुनीश्वरः ॥ १२१५ तत्त्वार्थवात्तिक और धवला टीका में भी सुदर्शन को अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर का पांचवा अन्सफरकेयली माना ।' (२) हरिषेण ने चम्पा के राजा का नाम दन्तिवाहन, प्रभाचन्द्र ने बाहन तथा आचार्यों ने धात्रीवाहन नाम दिया है । (३) हरिषेण ने सुदर्शन के गर्भ में आने के सूचक स्वप्नादि का वर्णन नहीं किया है, पर शेष मबने उल्लेख किया है। (४) हरिषेण और सुदर्शनोदयकार ने सुदर्शन की जम्मतिषि का कोई निर्देश नहीं किया है, जबकि नयनन्दि सौर सकलक्रीति ने सुदर्शन का जन्म पौष सुदी ४ का बतलाया है । नयनन्दि ने तो बुधवार का भी उल्लेख किया है। यथा-- __ पोसे पहुत्ते सेय पक्खए हुए, बुहवारए च उस्थि तिहि संजुए । १. तत्वार्थवात्तिक अ० १ सूत्र २०, पवला पु० १ पृ० १०३ ।

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