Book Title: Sudarshan Charitram
Author(s): Vidyanandi, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 7
________________ प्रतिज्ञा लेकर काठ की तरह खड़े रहे। अभयमनी ने अपने आपको नाखूनों से विदीर्ण कर सेठ ने बलात् मुझे नष्ट कर दिया, इस प्रकार प्रातःकाल जोर-जोर से चिल्लाना प्रारम्भ किया । यह सुनकर राजा ने सेठ को श्मसान में ले जाकर मार डालो, ऐसा कहा । वहाँ पर राजपुरुषों ने उसके ऊपर जो सल बार छोड़ी, वह उसके ऋण्ठ में फूलों की माला हो गई। देवा के शील की प्रशंसा कर फूलों की वर्षा आदि की। नगरजनों तथा राजा ने सुदर्शन से क्षमा कराई । सुकान्त नामक पुत्र को अपने पद पर बैठाकर विमल वाहन मुनि के समीप तप ग्रहण कर केवलशान उत्पन्न कर सुदर्शन मोम पले गए। विक्रम संवत् ११२३ के आस पास लिखे गये मुनि श्रीचन्द्र कृत कहाकोसु (कथाकोषा) में २२वीं सन्धि के १६ कटवकों में सुभग गोपाल और सेल सुदान का चरित्र कहा गया है। __नयनन्दि कृत सुवेसणचरिउ में मुदर्शन मुनि के चरित्र का विविध छन्दों में काव्यात्मक ढंग से वर्णन किया गया है। यह काम्य १२ संधियों से युक्त है। इसकी रचना अवन्ति प्रदेश की राजधानी धारानगरी के वसविहार नामक जैन मन्दिर में राजा भोज के समय विक्रम संवत् ११०० में हुई थी। रामचन्द्र मुमुक्षु कृत पुण्यास्रव कथाकोश में 'पञ्चनमस्कार मन्त्र फलम्' नामक द्वितीय अधिकार में आठवीं कथा सुभग गोपालवर सेठ सुदर्शन को फही गई है। पुण्यात्रव कथाकोश छह अधिकारों में विभक्त है । इसमें कुल छप्पन कथाएँ है। रामचन्द्र मुमुक्षु १२वीं शती के मध्य से भी पूर्वकालीन सिद्ध होते है। भट्टारक सकलकोति ( विक्रम संवत् १४४३-१४९९ ) को अनेक रचनायें प्राप्त है। इनमें एक रचना सुदर्शन चरित भी है । पूज्य श्री १०८ आचार्य ज्ञानसागर जी ने अभी बीसवीं शताब्दी ई. में सुदर्शनोदय काव्य की रचना की, जिसका विद्वत्तापूर्ण सम्पादन ५० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, सिद्धान्तालार, न्यायतीर्थ, सादूमल (जिला-ललिसातुर, ३० प्र०) ने किया। यह रचना प्रथम बार वीर निर्वाण संवत् २४९३, वि० सं० २०२३ नवम्बर १९६६ में प्रकाशित हुई। इस काव्य के विषय में श्री स्यावाद महा. विद्यालय, काषी के साहित्याचयापक पं. गोविन्द नरहरि वैजापुरकर, एम. ए., न्याय-वेदान्त-साहित्याचार्य ने लिखा है कि नौ सगों वाला यह काव्य चमापुरी के सुदर्शन सेठ का चरित वर्णन करता हुआ जिनोपदिष्ट मोक्ष-लक्ष्मी का पोषण करता है। प्रस्तुत काध्य में धीरोदात्त नामक की ऐसी कौतूहल जनक कथावस्तु कवि ने अपनी कविता के लिए चुनी है कि वह इस काव्य के आद्योपान्त पढ़ने की उत्सुकता को शान्त नहीं करती, प्रत्युत उत्तरोत्तर प्रति सर्ग वह बढ़ती ही

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