Book Title: Story Story
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 12
________________ || छिपा छिपे नही पाप ।। गुप्त सन्देश वामदेव और रूपसेन दोनों में मित्रता थी। रूपसेन धूर्त था और वामदेव सरल। एक बार दोनों धन कमाने के लिए परदेश गये। उन्होंने वहाँ व्यापार करके खूब धन कमाया और फिर घर के लिए रवाना हुए। दोनों के पास पाँचपाँच सौ स्वर्ण मुद्राएँ थीं। जब वे दोनों बीच जंगल में पहुँचे, तब रूपसेन के मन में पाप आया। उसने वामदेव को मार कर उसका धन छीन लेने का विचार किया। जब वह वामदेव को मारने लगा, तब वामदेव ने कहा-तुम मेरा धन भले ही ले लो, पर मेरा एक काम कर दो, तो मैं सुख से मर सकूँगा। मेरी पत्नी वर्षों से मेरा इन्तजार कर रही है। उसे मेरा एक छोटा-सा सन्देश सुना देना। वह सन्देश है-वारूलीआ। रूपसेन ने वामदेव को वचन दिया और उसे मार डाला। उसका धन छीनकर वह ता आगे बढ़ा। जब वह अपने गाँव पहुँचा तो वामदेव की पत्नी ने उससे अपने पति के समाचार पूछे। तब रूपसेन ने वामदेव की मृत्यु का समाचार और उसका सन्देश वारूलीआ उसे सुना दिया। वामदेव की पत्नी को रूपसेन पर शक हो गया। वह न्यायाधीश के पास गई और उन्हें सारी बात बता दी। न्यायाधीश बड़े बुद्धिमान थे। वारूलीआ शब्द का अर्थ उनकी समझ में आ गया। वह अर्थ इस प्रकार था - वामदेव को मार कर, रूपसेन अति नीच || लीधी मुहरें पाँच सौ, आवत वन के बीच ।। रूपसेन को अपना अपराध कबूल करना पड़ा। न्यायाधीश ने वामदेव की पत्नी को पाँच सौ मुहरें दिलवाईं और रूपसेन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only wwww jainelibrary.org

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