Book Title: Sthanang Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 711
________________ सुधा टीका स्था09 सू०३८ सनत्कुमारादि कल्पस्थितदेवस्थितिनिरूपणम् ६८९. मूलम्-सर्णकुमारे कपरे उक्कोलेणं देवाणं सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । माहिंदे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सातिरेगाई सत्त सागरोवनाई ठिई पण्णत्ता । बंभलोगे कप्पे जहणणेणं देवाणं सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ सू९ ३८॥ छाया--सनत्कुमारे कल्पे उत्कर्पण देवानां सप्त सागरोपमाणि स्थितिः, प्रज्ञप्ता। माहेन्द्रे कल्पे उत्कर्षेण देवानां सातिरेकाणि सप्त सागरोपमाणि स्थिति प्रज्ञप्ता । ब्रह्मलोके कल्पे जघन्येन देवानां सप्त सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ॥ सू० ३८ ॥ टीका-'सणंकुमारे कप्पे' इत्यादिव्याख्या सुगमा । सू० ३८ ॥ मूलम्-बंगलोयलंतएसु णं कप्पेसु विमाणा सत्त जोयणसयाइं उड्डे उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ सू० ६९ ॥ से भिन्न और भी सात सौ देव हैं । इसी तरह गर्दतीय और तुषित इनके मध्य में सात देव प्रधान हैं और इनसे भिन्न सात हजार और भी देव हैं ॥ सूत्र ३७ ॥ ___ "सणंडमारे कप्पे उक्कोसे णं देवाणं " इत्यादि । सू० ३८॥ टीकार्थ-सनत्कुमार कल्पमें देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपमकी कही गई है। माहेन्द्र कल्म में देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागर से कुछ अधिक कही गई है। ब्रह्मलोक कल्प में देवों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम की कही गई है। सूत्र ३८ ॥ છે, અને તે સિવાયના બીજા ૭૦૦ સામાન્ય દે છે. એ જ પ્રમાણે ગઈ તેય અને તુષિત દેવમાં સાત દે મુખ્ય છે અને તિ સિવાયના સાત હજાર બીજા દે છે. તે સૂ ૩૮ છે " सणंकुमारे कप्पे उक्कीसेणं देवाणं " त्या-(सू ३७) ટીકાથ–સનકુમાર કદ માં દેની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સાત સાગરોપમની કહી છે. મહેન્દ્ર કલ્પમાં દેવની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સાત સાગરોપમ કરતાં થોડી વધારે કહી છે. બ્રક કપમ દેવોની જઘન્ય સ્થિતિ સાત સાગરોપમની કહી છે.સૂ ૩૮માં स्था०-८७

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