Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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३७८
एतान्येव समवसरणानि चतुर्विंशतिदण्डके निरूपयन्नाह- नेरइयाणमित्यादि सुगमम्, नवरं नारकादिपञ्चेन्द्रियाणां समनस्कत्वाच्चत्वार्यप्येतानि सम्भवन्ति, विगलेंदियवज्जं ति एक-द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियाणाममनस्कत्वान्न सम्भवन्ति तानीति । - [सू० ३४६] चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तंजहा-गजित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गजित्ता, एगे गजित्ता वि वासित्ता वि, एगे णो गजित्ता णो वासित्ता १ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता, तंजहागजित्ता णाममेगे णो वासित्ता ह्व [= ४], २ ।
चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तंजहा-गजित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता, विजुयाइत्ता णाममेगे ह्व [= ४], ३ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता, तंजहा-गजित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता ह्व [= ४], ४ । ___चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तंजहा-वासित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता ह [= ४], ५ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाता [पन्नत्ता, तंजहा-]वासित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता ह [= ४], ६ ।
चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तंजहा-कालवासी णाममेगे णो अकालवासी ह्व [= ४], ७ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता, तंजहा-कालवासी णाममेगे नो अकालवासी ह [= ४], ८ । __ चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तंजहा-खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी ह [= ४], ९ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता, तंजहा-खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी ह [= ४], १० । ___चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तंजहा-जणतित्ता णाममेगे णो णिम्मवतित्ता, णिम्मवतित्ता णाममेगे णो जणतित्ता ह्व [= ४], ११ । एवामेव चत्तारि अम्मापियरो पन्नत्ता, तंजहा-जणतित्ता णाममेगे णो णिम्मवतित्ता ह्व [= ४], १२ ।
चत्तारि मेहा पन्नत्ता, तंजहा-देसवासी णाममेगे णो सव्ववासी ह [= ४], १३ । एवामेव चत्तारि रायाणो पन्नत्ता, तंजहा-देसाधिवती णाममेगे

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