Book Title: Sramana 2006 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 6
________________ 'श्रमण' पाठकों की नज़र में समादरणीय सम्पादक जी, आपकी सम्पादन मनीषा से मण्डित 'श्रमण' का जुलाई - दिसम्बर, २००५ अंक प्राप्त हुआ। इसमें सम्मिलित सभी आलेख विचार - प्रौढ़ि से परिपूर्ण एवं प्रज्ञापूत लेखनी से प्रसूत हैं, जिनमें न केवल जैन दर्शन अपितु जैनेतर दर्शनों विशेषतः बौद्ध और चार्वाक दर्शन की बहुआयामी दृष्टियों का भी समेकित आकलन हुआ है। इसमें भारतीय निरीश्वरवादी दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन का अपूर्व अवसर 'श्रमण' के प्रबुद्ध पाठकों को उपलब्ध होगा । यथासमावेशित सभी आलेख जैन शास्त्र के स्तम्भपुरुष प्रो० ० सागरमल जैन की उस समृद्ध आन्वीक्षिकी को संकेतित करते हैं, जो एक प्रकाण्ड दार्शनिक एवं शास्त्रसिक्त गवेषक की बौद्धिक पारगामिता की संवाहिका हैं। प्रो० जैन एक सुलझे हुए चिन्तन के धीरधी अक्षर पुरुषों में अग्रणी हैं। साधुवाद श्रीरंजनसूरिदेव, पटना मान्यवर सम्पादक जी, 'श्रमण' जुलाई - दिसम्बर, २००५ का अंक प्राप्त हुआ। प्रस्तुत अंक में सम्मानीय बहुश्रुत विद्वान प्रो० सागरमल जैन के चयनित विशिष्ट लेखों के आधार पर विशेषांक प्रकाशित कर आपने महनीय साहित्यिक कार्य सम्पादित किया है। कृपया हार्दिक बधाई स्वीकार करें। प्रो० जैन के उक्त लेख निश्चय ही जैन धर्मदर्शन के विविध आयामों को रेखांकित करते हैं जो भ्रांतियों का निराकरण कर पुष्ट प्रमाणों द्वारा वास्तविक स्थापनाओं को स्थापित करते हैं, जिनमें एक वैचारिक नवीन दिशा प्राप्त होती है। प्रो० जैन इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहें, यही कामना है। कवर पृष्ठ पर भी हिन्दी में नाम होना चाहिए। इस नवीन साज सज्जा के लिए साधुवाद ! वेद प्रकाश गर्ग, मुजफ्फर नगर - २५१००२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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