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२२. उत्तराध्ययन, २५,२९-३१; १२.३७; कषायप्राभृत, १.८; प्रवचनसार, १.७. २३. उत्तराध्ययन, २५.१९-२७. २४. देखिए, लेखक की पुस्तक “मूकमाटी : चेतना के स्वर", नागपुर, १९९६. २५. सन्मतिप्रकरण, १.१२; तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, १.६.४; प्रमेयकमलमार्तण्ड,
पृ० ६७६; आप्तमीमांसा, २०८; तत्त्वार्थवार्तिक, १.६.४. २६. प्रवचनसार, १.७. २७. उवासगदसाओ, १.४३; आदिपुराण, ३९.१४७; उपासकाध्ययन, ३२०. २८. उत्तराध्ययन, २५.२९-३१.
उत्तराध्ययन, बारहवाँ अध्याय. ३०. उत्तराध्ययन, २२.२३. ३१. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ६२; दशवैकालिक, ४.१५. ३२. देखिये, लेखक की पुस्तक - जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास, पृ०
३२३-४१. ३३. कल्पसूत्र, १३३.१४४; उत्तरपुराण, ७४.३७३-७८; तिलोयपण्णत्ति,
४.११६६-७६; हरिवंशपुराण, ६०.४३२-४०. ३४. Studies in South Indian Jainism, p. 110-11. ३५. महावंस, ३३.७९. ३६. बृहत्कल्पभाष्य, भाग १, पृ० ७३-७५; आवश्यकनियुक्ति, गाथा, ३३६-३७;
Journal of the Royal Asiatic Society of Bangal, Jan. 1885. ३७. देखिए लेखक का आलेख - उपनिषदों पर जैनधर्म का प्रभाव, ऋषभदेव
फाउण्डेशन, दिल्ली. ३८. देखिए, लेखक का ग्रन्थ- 'जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास', जैन पुरातत्त्व,
पृ० ३४२-८१ और तीर्थकर महावीर और उनका चिन्तन, धूलिया १९७७. ३९. आचारांग, शस्त्रपरीक्षा. ४०. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ५७; तत्त्वार्थसूत्र, ७.१५; सागारधर्मामृत, ५१;
रत्नकरण्डश्रावकाचार ६७; चारित्रप्राभृत, २२. ४१. यः शस्त्रवृत्ति समरे रिपुः स्याद्यः कण्टको वा निजमण्डलस्य।
तमैव अस्त्राणि नृपाः क्षिपन्ति, न दीनकानीन कदाशयेषु।। यशस्तिलकचम्पू. ४२. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ५.१; सर्वार्थसिद्धि, ७.२२; भगवतीआराधना, १९२२.
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