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८१ गलती हो भी गई तो उसे सादर स्वीकार कर लेता है और उसका यथोचित प्रायश्चित ले लेता है।
इसलिए ऋजुता जीवन का अमिट सूत्र है, मानवता का लक्षण है, अहङ्कार का विगलन है। उत्तम आर्जव का यही तात्पर्य है कि व्यक्ति धोखेबाज न हो और वह सही जीवन तथा धर्म का मर्म समझे।
सन्दर्भ
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मोत्तूण कुडिलभावं णिम्मलहिदयेण चरदि जो समणो। अज्जवधम्मो तइयो तस्स दु संभवदि णियमेण।। - बा० अणु०, ७३. योगस्यावक्रता आर्जवम् । स०सि०, ९.६, पृ० ४१२. जो चिंतेइ ण वंकं ण कुणदि वंकं ण जंपदे बंकं। ण य गोवदि णिय दोसं अज्जवधम्मो हवे तस्स।। का०अनु०, ३९६; त० सा० ६.१५; अन०ध० ६.१७-२३. अज्जवं नाम उज्जुगत्तणं ति वा अकुडिलत्तणं ति वा। एवं च कुव्वमाणस्स कम्मणिज्जरा भवई, अकुव्वमाणस्स य कम्मोवचयो भवई। दश०वै० चूर्णि०, पृ० १८. परस्मिन्निकृतिपरेऽपि मायापरित्याग: आर्जवम् । दशवै०नि०हरि०वृ०, १०.३४९ आर्जवं मायोदयनिग्रहः। औप०अभय०वृ० १६.३३. मनोवचनकायकर्मणामकौटिल्यमार्जवम् । त०वृत्ति० श्रुत० ९.६.
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