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महोपाध्याय चन्द्रप्रभसागर वर्तमान शताब्दी में जैन परम्परा के उज्जवल नक्षत्र हैं। अब तक उनकी लेखनी से जैन धर्म-दर्शन, आगम, कथा साहित्य, इतिहास आदि विविध विषयों पर सैकड़ों ग्रन्थ प्रसूत हो चुके हैं। प्रस्तुत पुस्तक मुनि श्री के १९९८ के नागौर चातुर्मास के अवसर पर दिये गये मर्मस्पर्शी प्रवचनों का संग्रह है। यह पुस्तक सभी के लिये पठनीय और मननीय है। ऐसे लोकोपयोगी ग्रन्थ के प्रकाशन तथा उसे स्वल्प मूल्य पर विक्रय हेतु आवश्यक आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले श्रावकगण और प्रकाशक संस्था दोनों ही बधाई के पात्र हैं।
अनेकान्तदर्पण (प्रवेशांक १९९९ ई०) : सम्पादक- डॉ० रतनचन्द जैन एवं प्राचार्य श्री निहालचन्द जैन; प्रका०- अनेकान्त ज्ञान मन्दिर शोध संस्थान, बीना (सागर), मध्यप्रदेश ४७०११३; आकार- डिमाई; पृष्ठ १०७+१० रंगीन चित्र।
प्रस्तुत पत्रिका दिगम्बर जैन समाज, बीना (सागर) के सहयोग एवं ब्रह्मचारी श्री संदीप जैन 'सरल' के मार्गदर्शन में स्थापित अनेकान्त ज्ञान मन्दिर शोध संस्थान के वार्षिक मुखपत्र का प्रवेशांक है। अनेकान्त ज्ञान मन्दिर द्वारा ब्रह्मचारी जी के सानिध्य में प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के अन्वेषण एवं उनके संरक्षण का जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है उससे जैन समाज भली-भाँति सुपरिचित है। प्रस्तुत अंक में जैनधर्म के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों के लेखों को स्थान दिया गया है। इसके अलावा इसमें अनेकान्त ज्ञान मन्दिर के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखे गये लेखों को भी संकलित किया गया है। पत्रिका के अन्त में १० बहुरंगी चित्र भी दिये गये हैं जो इस ज्ञान मन्दिर का सजीव रूप हमारे सामने उपस्थित करते हैं।
ब्रह्मचारी श्री संदीप जैन 'सरल' के अथक परिश्रम से यह संस्था दिनोदिन विकास के पथ पर अग्रसर हो रही है और उनके इस ज्ञान यज्ञ में जैन समाज का जो सक्रिय सहयोग प्राप्त हो रहा है उन सभी का पूरा-पूरा विवरण इस पत्रिका में सहज ही उपलब्ध है। पत्रिका के मुखपृष्ठ पर यहाँ संरक्षित विभिन्न सचित्र पाण्डुलिपियों के रंगीन चित्र दिये गये हैं, जिनसे इसका स्वरूप अत्यन्त आकर्षक हो गया है। यह पत्रिका प्रत्येक पुस्तकालयों के साथ-साथ जैन धर्म-दर्शन में रुचि रखने वाले शोधार्थियों तथा सामान्य पाठकों के लिये भी उपयोगी है। निश्चित रूप से इस शोधपत्रिका का सर्वत्र आदर होगा।
सुखी जीवन : लेखक, पं०. शोभाचन्द जी भारिल्ल; प्रका०- पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-४, बापूनगर, जयपुर ३०२०१५; प्रथम संस्करण १९९९ ई०; पृष्ठ ८+२०६; मूल्य १२/- रुपये मात्र।
पं०शोभाचन्द्र जी भारिल्ल जैन समाज के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। हस्तसिद्ध लेखक, कुशल सम्पादक के साथ-साथ वे सफल अनुवादक भी हैं। उनकी मौलिक रचनाओं के विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद और उनके आठ-आठ संस्करण
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