Book Title: Sramana 1999 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 198
________________ १९४ तक के चौबीस तीर्थङ्करों का स्तवन बड़े ही श्रद्धा-भक्ति और भावनापूर्वक किया गया है। स्तवन में मल्हार, गौड, धनान्डी, वसन्तकेदारा, केदार, रामकली, रामगिरी आदि रागों का प्रयोग किया गया है। पुस्तक श्रद्धालुओं के लिये पठनीय है तथा इसकी साज-सज्जा सुन्दर और आकर्षक है। अतुल कुमार प्रसाद शारवतधर्म 'मांस निर्यात विरोध विशेषांक' : सम्पादक- श्री जे०के०संघवी; वर्ष ४७, अंक २-३, अगस्त-सितम्बर १९९९; पृष्ठ १४८+९ रंगीन चित्र व अनेक रेखाचित्र; मूल्य २० रुपये मात्र। ___ मनुष्य और पशु समुदाय आदिमकाल से ही एक दूसरे पर आश्रित रहे हैं इसीलिये पशुपालन मनुष्य का प्राचीनतम उद्योग रहा है। कृषि प्रधान देशों में तो पशुओं का महत्त्व निर्विवाद है ही किन्तु जहाँ कृषि योग्य भूमि का अभाव है वहाँ तो पशुपालन ही मनुष्य की एकमात्र आजीविका रही है। कृषि प्रधान देशों की अर्थव्यवस्था में आज भी पशुधन का उतना ही महत्त्व है जितना कि पहले था। पशुधन के विनाश का अर्थ है देश की अर्थव्यवस्था का विनाश। आज हमारे देश में यही हो रहा है। हमारी उपेक्षा और सरकार के सहयोग से मांस निर्यात कर देश के पशुधन को जिस गति से समाप्त किया जा रहा है उससे देश का विनाश सुनिश्चित है। प्रस्तुत पत्रिका के माध्यम से देश के प्रबुद्ध वर्ग ने हमें सोचने का अवसर दिया है कि हम देश की समृद्धि चाहते हैं या विनाश। यह किसी वर्ग या समाज विशेष का प्रश्न नहीं अपितु देश की अस्मिता का प्रश्न है। ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय पर विचारोत्तेजक लेखों के अत्यन्त सरल भाषा में प्रस्तुतीकरण के लिये लेखक-सम्पादक दोनों बधाई के पात्र हैं। यह अंक देश के सभी नागरिकों के लिये पठनीय और मननीय है। सरकारी आंकड़ों, रंगीन व रेखाचित्रों के माध्यम से देश की इस विकट समस्या का इसमें जो दृश्य उपस्थित किया गया है वह अन्यत्र प्राय: दुर्लभ ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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