Book Title: Sramana 1999 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 195
________________ १९१ प्रकाशित हो चुके हैं जो उनकी लोकप्रियता के ज्वलंत उदाहरण हैं। प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान् लेखक ने अध्यात्म और आगमों के आलोक में सुखी जीवन के रूप में कथा शैली के अन्तर्गत अत्यन्त सुबोध भाषा में जैन दर्शन के मौलिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इन सिद्धान्तों को दैनिक जीवन में उतार कर प्राणी सुखी जीवन जी सकता है। पण्डित जी की अन्य पुस्तकों की भाँति उनकी इस रचना का भी समाज में सर्वत्र आदर होगा, इसमें सन्देह नहीं। पुस्तक की साज-सज्जा उत्तम व मूल्य अत्यधिक अल्प रखा गया है जिससे इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार हो। बिखरे मोती (डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल द्वारा प्रणीत साहित्य से चुने हुए लेखों का संकलन); संकलन एवं सम्पादक- ब्रह्मचारी श्री यशपाल जैन; प्रका०पं०टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-४, बापूनगर ,जयपुर ३०२०१५; प्रथम संस्करण १९९९ ई०; आकार-डिमाई; पक्की जिल्द; पृष्ठ ६+२१८; मूल्य १२/-रुपये मात्र। प्रस्तुत पुस्तक में डॉ० हुकुमचन्द भारिल्ल द्वारा पूर्व में समय-समय पर लिखे गये विभिन्न लेखों का संकलन है। सम्पूर्ण पुस्तक तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम "खण्ड में १८ लेख हैं जो व्यक्ति विशेष को लक्ष्य में रख कर लिखे गये हैं। द्वितीय खण्ड में १७ लेख हैं जो समसामयिक विषयों पर आधारित हैं। तृतीय और अन्तिम खण्ड में ६ लेख हैं जो व्यक्ति विशेष पर लिखे गये हैं। डॉ० भारिल्ल जैन समाज के सिद्धहस्त लेखक, कुशल वक्ता और पूज्य श्री कानजी स्वामी के प्रमुख अनुयायियों में से हैं। उनकी लेखनी से अब तक शताधिक ग्रन्थ प्रकाश में आ चुके हैं। पुस्तक की साज-सज्जा सुन्दर व मुद्रण त्रुटिरहित है। यह पुस्तक सभी के लिये पठनीय और मनन करने योग्य है। What Is Jainism; T.U. Mehta; Publisher-- UmedchandBhai and Kasumbaben Public Chiritable Trust, "Shiddhartha", 3, Dada Rokadnath Society, Paldi, Ahmedabad, 380007, First Ed. 1996; pp. 34; Prise Rs.5/ प्रस्तुत पुस्तक में जैन धर्म-दर्शन के सार को अत्यन्त सरल ढंग से आंग्ल भाषा में प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसके लेखक हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश श्री टी०यू० मेहता हैं। न्यायमूर्ति श्री मेहता ने अमेरिका और कनाडा की अपनी यात्रा में देखा कि वहाँ स्थायी रूप से निवास करने वाले भारतीयों में वहाँ की उदार और, वैज्ञानिक संस्कृति के साथ-साथ अपनी धर्म-संस्कृति के सम्बन्ध में जानकारी रखने की ऐसी उत्कट भावना है जो अपने देश में दुर्लभ है। यद्यपि विद्वान् लेखक ने प्रस्तुत पुस्तक की रचना उन्हीं भाई-बहनों को उनके संस्कृति से परिचित कराने के उद्देश्य से की है किन्तु इससे जैन धर्म-दर्शन के प्रति जिज्ञासा रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति निश्चित ही लाभान्वित होगा। वस्तुतः इस पुस्तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200