Book Title: Sramana 1999 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 190
________________ साहित्य सत्कार Arhat Parsva and Dharanendra Nexus : Ed. M.A. Dhaky, Publishers, Lalbhai Dalpatbhai Institute of Indology, Ahmedabad, & Bhogilal Laherchand Institute of Indology, Delhi; First edition 1997, P. 14+148+67 plates, Prise Rs. 400/ प्रस्तुत पुस्तक भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली द्वारा वर्ष १९८७ में "Arhat Parsva and Dharanendra Nexus" नामक विषय पर आयोजित संगोष्ठी में देश के शीर्षस्थ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किये गये शोध-लेखों का संकलन है। इस संगोष्ठी के प्रायोजक प्राध्यापक श्री मधुसूदन ढांकी भारतीय स्थापत्य एवं कला तथा जैन धर्म के इतिहास के विश्व के शीर्षस्थ विद्वान् हैं। उक्त विषयों में उनके द्वारा निर्णीत तथ्यों को अन्तिम माना जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में कुल १६ आलेख हैं जिनमें से २ हिन्दी भाषा में और शेष १४ आंग्ल भाषा में हैं। इन लेखों के प्रस्तुतकर्ता अपने-अपने अध्ययन के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। विद्वान् सम्पादक ने सभी आलेखों का अत्यन्त श्रमपूर्वक सम्पादन किया है जिससे यह ग्रन्थ विश्वस्तरीय बन सका है। ऐसा प्रामाणिक ग्रन्थ सभी पुस्तकालयों के लिये अनिवार्य रूप से संग्रहणीय और इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले सभी विद्वानों के लिये पठनीय और मननीय है। प्राध्यापक श्री ढांकी द्वारा सम्पादित यह पुस्तक भी निश्चित रूप से देश-विदेश में विद्वानों द्वारा आदृत होगी। ऐसे विश्वस्तरीय ग्रन्थ के सम्पादन और अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उसे प्रकाशित करने के लिये सम्पादक और प्रकाशक दोनों ही अभिनन्दनीय है। पाञ्चाल (पञ्चाल शोध संस्थान, कानपुर की वार्षिक शोध पत्रिका) : अंक ११, १९९८ ई०; सम्पादक- डॉ० ए०एल० श्रीवास्तव; आकार- रायल अठपेजी; पृष्ठ १६+१४६; मूल्य १०० रुपये। प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व की पत्रिकाओं में पञ्चाल का नाम अग्रगण्य है। स्व०प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी के सक्रिय सहयोग से स्वनामधन्य, श्रेष्ठिवर्य श्री हजारीमल जी बांठिया द्वारा स्थापित पञ्चाल शोध संस्थान की यह वार्षिक शोधपत्रिका है। इस संस्थान के क्रियाकलापों और गौरवपूर्ण उपलब्धि से विद्वद्जगत् भली-भांति सुपरिचित है। प्रस्तुत अंक दो विभागों में विभक्त है। प्रथम विभाग में कुल २१ शोधनिबन्ध संकलित हैं जिनमें से १० हिन्दी भाषा में व ११ आंग्ल भाषा में हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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