Book Title: Sramana 1999 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 191
________________ १८७ द्वितीय विभाग में पञ्चाल शोध संस्थान के १२वें वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों का विवरण, शोधसृजन एवं समीक्षा तथा पञ्चाल के पूर्व प्रकाशित १० भागों के लेखों व उनके लेखकों की सूची है जो शोध की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। अन्त में संस्थान परिचय तथा इस अंक के लेखकों का नाम एवं उनका पूरा पता दिया गया है। पूर्व के अंकों की भांति इस अंक का भी सर्वत्र आदर होगा, इसमें सन्देह नहीं है। नमस्कार चिन्तामणि : लेखक- पूज्य मुनि श्री कुन्दकुन्द विजय जी म०सा०; हिन्दी अनुवादक- श्री चांदमल सीपाणी; प्रकाशक, श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर ट्रस्ट, भूपतवाला, हरिद्वार २४९४१० (उत्तर प्रदेश); पुनर्मुद्रण १९९९ ई०; आकार--- पाकेट साइज; पृष्ठ ५६+२८३; मूल्य ९५/- रुपये।। मानव जीवन में मन्त्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक इन तीनों प्रकार के दुखों में किसी भी एक दुःख से जगत् के प्राणी स्वयं को सदैव पीड़ित अनुभव करते हैं। इन पीड़ाओं से बचाने की अद्भुत शक्ति मन्त्रों में भरी पड़ी है। इन मन्त्रों में नमस्कार महामन्त्र का सर्वोच्च स्थान है। जैन परम्परा के सभी सम्प्रदायों में समान रूप से इसका आदरभाव है। इसे द्वादशांगों एवं चौदहपूर्वो का सार माना जाता है। प्रस्तुत पुस्तक मुनि श्री कुन्दकुन्द विजय जी म०सा० द्वारा गुजराती भाषा में रचे गये ग्रन्थ का हिन्दी रूपान्तरण है। पुस्तक के प्रारम्भ में मुनि श्री भद्रंकर विजय गणि द्वारा लिखित प्रस्तावना, मुनि श्री जम्बू विजय जी द्वारा लिखे गये दो शब्द तथा लेखक द्वारा दिया गया विषयप्रवेश अत्यन्त उपयोगी है। इस पुस्तक के विविध अध्यायों में नमस्कार महामन्त्र के बाह्य व आन्तरिक स्वरूप, अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-पद की विचारणा, उनका विशिष्ट परिचय तथा इस महामन्त्र का जप करने वाले साधकों को ध्यान में रखने वाली यथायोग्य बातों की सविस्तार चर्चा है जो अन्यत्र दुर्लभ है। ऐसे लोकोपयोगी ग्रन्थ का प्रणयन कर मुनिश्री ने मानव जगत् का महान् उपकार किया है। इस पुस्तक का हिन्दी रूपान्तरण हो जाने से हिन्दी भाषा-भाषी भी इससे लाभान्वित हो रहे हैं। इसका प्रथम संस्करण १९६९ ई० में श्री जिनदत्त सूरि मण्डल, अजमेर से प्रकाशित हुआ था और पिछले कई वर्षों से यह अनुपलब्ध था। ऐसे उपयोगी ग्रन्थ का पुनर्मुद्रण कर प्रकाशक संस्था ने प्रसंशनीय कार्य किया है। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक तथा मुद्रण निर्दोष है। गूर्जरफागुसाहित्य : लेखक- डॉ० रमणलाल ची० शाह; प्रकाशक- श्री मुम्बई जैन युवक संघ, ३८५, सरदार वल्लभभाई पटेल मार्ग, मुम्बई ४००००४; आकार- डिमाई; प्रथम संस्करण, फरवरी १९९९ ई०; पृष्ठ १६+३५०; मूल्य१०० रुपये मात्र। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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