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पार्श्वनाथ विद्यापीठ के नये निदेशक प्रो. भागचन्द्र जैन 'भास्कर'
पार्श्वनाथ विद्यापीठ के नये निदेशक के रूप में प्रोफेसर भागचन्द्र जैन 'भास्कर', पूर्व विभागाध्यक्ष, पालि-प्राकृत विभाग, नागपुर विश्वविद्यालय ने दिनाङ्क १६ जुलाई १९९९ को अपना कार्यभार ग्रहण किया। जैन धर्म-दर्शन एवं भारतीय संस्कृति को समर्पित पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पूर्व नियामकोंमुनि कृष्णचन्द्र जी, श्री शांतिभाई बनमाली सेठ, प्रो० मोहनलाल
मेहता और प्रो० सागरमल जैन की गौरवशाली परम्परा में प्रो०भागचन्द्र जी अगली कड़ी हैं।
आपका जन्म दिनाङ्क १/१/३९ को मध्यप्रदेश स्थित छतरपुर जिले के बम्हौरी नामक ग्राम में हुआ है। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा सागर तथा उच्च शिक्षा सागर, वाराणसी एवं श्रीलंका में सम्पन्न हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से १९६० में आपने संस्कृत भाषा में, १९६२ में पालि भाषा में तथा नागपुर विश्वविद्यालय से १९७२ में प्राचीन 'भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व में एम०ए० की उपाधि प्राप्त की। १९६५ में आपने कामनवेल्थ फेलो के रूप में श्रीलंका के विद्योदय विश्वविद्यालय से Jainism in Buddhist Literature नामक विषय पर पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की और उसके तत्काल बाद नागपुर विश्वविद्यालय के पालि-प्राकृत विभाग में प्राध्यापक एवं अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवायें प्रारम्भ की। १९७८ ई० में आप रीडर पद पर प्रोत्रत हुए। १९८३ में आप राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर में जैन अध्ययन केन्द्र के निदेशक पद पर नियुक्त हुए और १९८५ तक इस पद पर बने रहे। १९८६ से १९८७ तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के National Fellow रूप में कार्य किया। उसके बाद ही नागपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर आपकी नियुक्ति हुई जहाँ से अप्रैल १९९९ में आप सेवानिवृत्त हुए। अध्ययन के प्रति आपकी उत्कट भावना रही है इसीलिये आपने १९७८, १९९२ एवं १९९८ में तीन अलग-अलग विषयों पालि-प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी में डी०लिट० की उपाधि प्राप्त की। अब तक आपके द्वारा लिखित, अनुवादित एवं सम्पादित ४० से अधिक पुस्तकें तथा ३०० से अधिक आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक अवसरों पर विदेशों के विभिन्न विश्वविद्यालयों में आपके व्याख्यान आयोजित किये जा चुके हैं। आप नागपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं- जैन मिलन एवं आनन्ददीप तथा कोल्हापुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका रत्नत्रय के सम्पादक रहे हैं। नागपुर विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाली पत्रिका के सम्पादक मण्डल में भी आप रह चुके हैं। १९६० के दशक में अपने वाराणसी प्रवास के समय आप पार्श्वनाथ विद्याश्रम (अब पार्श्वनाथ विद्यापीठ) से भी सक्रिय रूप से जुड़े रहे। संस्थान
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