Book Title: Sramana 1990 10 Author(s): Ashok Kumar Singh Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 7
________________ निक्षेप या आधार माने गये हैं, अर्थात् किसी वस्तु के स्त्री कहे जाने के लिए उसे निम्न एक या एकाधिक लक्षणों से युक्त होना आवश्यक है, यथा ( १ ) स्त्रीवाचक नाम से युक्त होना जैसे-रमा, श्यामा आदि । (२) स्त्री रूप में स्थापित होना जैसे-शीतला आदि की स्त्रीआकृति से युक्त या रहित प्रतिमा । ( ३ ) द्रव्य-अर्थात् शारीरिक संरचना का स्त्री रूप होना । (४) क्षेत्र-देश-विशेष की परम्परानुसार स्त्री की वेषभूषा से युक्त होने पर उस देश में उसे स्त्रीरूप में समझा जाता है। ( ५ ) काल-जिसने भूत, भविष्य या वर्तमान में से किसी भी काल में स्त्री-पर्याय धारण की हो, उसे उस काल की अपेक्षा से स्त्री कहा जा सकता है। (६) प्रजनन क्षमता से युक्त होना। (७) स्त्रियोचित् कार्य करना। (८) स्त्री रूप में भोगी जाने में समर्थ होना। (९) स्त्रियोचित् गुण होना और (१०) स्त्री सम्बन्धी वासना का होना।' जैनाचार्यों की दृष्टि में नारी-चरित्र का विकृत पक्ष जैनाचार्यों ने नारी-चरित्र का गम्भीर विश्लेषण किया है। नारीस्वभाव का चित्रण करते हए सर्वप्रथम जैनागमग्रन्थ तन्दूलवैचारिक प्रर्कीणक में नारी की स्वभावगत निम्न ९४ विशेषतायें वर्णित हैं__ नारी स्वभाव से विषम, मधुर वचन की वल्लरी, कपट-प्रेम रूपी पर्वत, सहस्रों अपराधों का घर, शोक की उद्गमस्थली, पुरुष के बल के विनाश का कारण, पुरुषों की वधस्थली अर्थात् उनकी हत्या का कारण, लज्जा-नाशिका, अशिष्टता का पुन्ज, कपट का घर, शत्रुता की खान, शोक की ढेर, मर्यादा की नाशिका, कामराग की आश्रय स्थली, दुराचरणों का आवास, सम्मोह की जननी, ज्ञान का स्खलन करने वाली, शील को १. णामं ठवणादविए खेत्ते काले य पज्जणणकम्मे । भोगे गुणे' य भावे दस ए ए इत्थीणिक्खेवो । --सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा ५४ २. तन्दुलवैचारिक सावरि सूत्र १९ (देवचंद लालभाई पुस्तकोद्धार ग्रन्थमाला) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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