Book Title: Siri Chandrai Chariyam
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay,
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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सिरिचंदरायचरिणी
चउत्थो उद्देसो
॥२२३॥
सक्केण सिलाहिओ तारिओ सीलगुणविहूसिओ सि, जेण मए छलेण छलिओ वि तुं निम्मलसीलव्वयधरणसीलो वियाणिओ सि' त्ति वोत्तण तं नमंसिऊण देवो सट्टाणं गओ । अह चंदराओ वि तओ निवहिऊण पेमलालच्छीए समीवम्मि गच्छित्था । पहायकालम्मि सव्वेसिं अणुण्णं घेत्तूर्ण चंदराओ पोयणपुराओ पयाण विहेइ । मग्गम्मि अणेगनरवइगणं जिणंतो रायकण्णाण त सत्तसयं परिणतो कमेणं आभापुरीए समीवं समागओ। तया तस्स आगमणं सोच्चा गुणावली समई पहाणो य पउरलोगा य परमपमोयं संपत्ता, सव्वे सज्जिया होऊण चंदरायं महसवपुव्वयं तोरणज्झयपयागा-परिमंडियं पुरि पवेसावेइरे, सयलजणपणमिओ महाराओ सव्वं पयावग्गं सुट्छु सम्माणेइ । तइओ नयरीए पविसंतं चंदरायं दट्टुं बहूई जणबुंदाई तत्थ मिलियाई, पड़गेहम्मि हरिसवड्ढवणाई संजायाई, तया सव्वजणचित्तम्भंतम्मि आणंदाइरेगो पयडिओ । भट्ट-चारणगणो चंदरायस्स गुणगणे गाइउं पयट्टिओ। असंखप्पएसवंतो जीवो जह सरीरम्मि नियपएसेहिं सद्धिं पविसेइ तह नरवई संखाईयपरिवारेहिं सह नयरीए पविसेइ, पवेससमयम्मि तस्स पुरओ अणेगगय हय-रह-पाइक्क ज्झयधराइणो चलेइरे, तओ तस्स सत्तसयपत्तीणं सयरहा सत्तनयाणं सयसयचक्कवालाई पिव वच्चंति, तहिं च मयमत्तभमरझंकारनाएण चंदरायजसं गायंता पिव झरंतमयगयवरा सोहेइरे, अणेगविहरियगणा दिसाओ गज्जाविति, चंदरायकित्तिसरियातरंगसरिच्छा 'पवमाणा तुरंगमा तह य विजयंग-सरिसपंचवण्णज्झयपडागियाओ विरायंति, पाइक्कगणपरिवरिओ लंछणरहिओ चंदराओ जोइसचक्केण चंदव्य छज्जेइ, अवराई पि जलहरसदाणुकरणमंगलियवाइत्ताई वज्जति, पइपयं पउरलोगा चंदरायं
१ प्लवन्तः-उच्छलन्तः ।
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॥२२३॥
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