Book Title: Siri Chandrai Chariyam
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay, 
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 273
________________ सिरिचंदरायचरिए ॥२२९॥ Jain Education International अलसा होह अकज्जे, पाणिवहे पंगुला सया होह । 'परतत्तीसु अ बहिरा, जच्चंधा पर कलत्तेसु ॥ १०५ ।। जो वज्जइ "परदारं, सो सेवइ नो कयाइ परदारं । सकलत्ते संतुट्ठो, सकलत्तो सो नरो होइ ॥ १०६ ॥ ते कह न वंदणिज्जा ?, रूवं दट्ठूणं परकलत्ताणं । धाराहयव्व वसा, वच्चति महिं पलोअंता ॥ १०७॥ सुविसुद्ध सीलजुत्तो, पावइ किति जसं च इह लोए । सव्वजणवल्लहो च्चिय, सुहगइभागी अ परलोए ।। १०८ ।। "वर अग्गिम्मि पवेसो, वरं विसुद्रण कम्मुणा मरणं । मा गहियव्वयभंगो, मा जी अं खलियसीलस्स ॥ १०९ ॥ er कुलीन पाणते वि निंदियं कज्जं कयावि न समायरंति । एवं चंदरायस्स वयणाई सोच्चा उक्कडरोसा सा विज्जाहरी त भणेइ - जइ मम पत्थणं न अंगीकरेसि, तइया तुं खत्तियकुलसमुप्पन्नो न, अहुणा जइ मं न गिव्हिहिसि तो हं तुव इत्थीहच्चापावं दाहं, तओ किवं काऊण खत्तियकुलजाओ सि, परकज्जरओ जइ । तो मे सरणहीणाए, वयणं अणुमण्णसु ॥ ११० ॥ चंदराओ साहे- ' सुंदरि ! इत्थीहच्चापाओ वि सीलभंगपावं अहिगयरं कहिज्जर, सुणसु तुमं - पुरा दासर हिरामस्स पति 'सीयं अवहरंतो दसमुहो मच्चु लणं दुग्गई गओ, पंडवभज्जं दोवई हरंतो पउमुतरो नरवई दुहिओ जाओ, अहल्लाए संगमाओ इंदो गोयमरिसिणो सावाओ देहम्मि सहस्सभगत्तणं संपत्तो, हिमालयसुर्य पंव्वई अहिलसंतो भैसमंगओ असुरो भैंसमीभूओ, एवं परदारसंगरओ को लोगम्मि १. परकथासु । २. परदारान् । ३. परद्वारम् । ४ स्वकलत्रे । ५. सकलत्रः । ६. वरम् । ७ जीवितम् ८. सीताम् । ९ दुःखितः । १०. पार्वतीम् । ११ भस्माङ्गदः । १२. भस्मीभूत | For Personal & Private Use Only) चउत्थो उद्देसो ॥२२९॥ www.jaiinelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318