Book Title: Siri Chandrai Chariyam
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay,
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
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सिरिचंदरायचरिए
चउत्थो
उद्देसो
॥२२५॥
नियसामिणा सद्धिं कीलंती वएइ-नाह ! भवओ विरहम्मि मए महाकद्रेण सोलस वरिसा निग्गमिआ, अहं तु मज्झ बहिणीए पेमलालच्छीए अच्चंत उवयारं मण्णेमि, तीए कल्लाणं होउ, सिद्धायलो य गिरिवरो वि चिरं जएउ, जेण मम पुणो वि तुम्हाणं दंसणं संजाय, तह वि नाह ! सासूए सह अहं विमलापुरि जइ न गच्छंती तइया तुं पेमलालच्छि कहं परिणेतो ?, तो तए ममावि उवयारो मण्णियव्यो । चंदराओ ईसिं विहसिऊण वएइ-पिए ! एत्तियं वरिसं जाव पक्खित्तण मए अणुहूअं तहिं पि तुम्ह उवयारं मण्णिस्सामि । गुणावली साहेइसामि! जइ तुं कुक्कुडो न हंतो तइया तुव विमलगिरिम्मि गमणं महातित्थस्स य फरिसणं वंदण एरिसमुहसंपत्ती य कहं होज्जा ?, संसारसमुदस्स य कहं तरंतो, तओ पिय !
मम दोसे न पासाहि, गुणग्गाही भवाहि तुं । उत्तमपुरिसाणं हि, एस मग्गो सिया सया ॥११५।। वुत्तं च___ अवगणइ दोसलक्खं, इक्कं मन्नेइ जं कयं सुकयं । सयणो हंससहावो, पिअइ पेयं वज्जए नीरं ॥११६॥
मंदमई हं सामूसिक्खणाणुसारिणी जाया, तस्स फलं नियकम्माणुसारेण मए विउलं लद्धं, पाणणाह ! तुव विरहानलपीलियाए मम नयणंसुधाराओ अज्ज जाव न सूसिआ, तो दइव्वं पत्थेमि,कम्मि विभवंतरम्मि एरिसी सासू मम मा मिलेज्जा, तीए अहं एयारिसी दंडिया, जं जावज्जीवं न वीसरिम्सामि, जाओ दिवसाओ तुं सिवमालाए सद्धिं गओ तो पारब्भ मम जे दिवहा जहा गया ते उ जगनाहो एव जाणेइ, संपर्य अहं माणु
१ पयः-क्षारम् । २ शुष्काः ।
॥२२५॥
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