Book Title: Siri Chandrai Chariyam
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay, 
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 298
________________ चउत्थो सिरिचंदरायचरिण ॥२४६॥ पक्खिणीए पक्खाई मूलओ कड्ढेइ, तहिं निरवराहिणीए पक्खिणीए किं बलं ?, सा पक्खिणी सोलसपहरपज्जंतं निविडपीडं अणुभविऊण अट्टज्झाणपरा मरिऊण दासीदिण्णनमुक्कारमहापहावेण-निबद्धमणुआउसा वेयड्ढगिरिम्मि गयणवल्लहनयरनिवइ-पवणवेगनरिंदस्स वेगवईभज्जाए कुक्खिम्मि पुत्तित्तणेण समुप्पण्णा । गब्भसमए परिपुण्णे वेगवई तं पसवेइ, दुवालसम्मि दिवसम्मि निवइणा वीरमइ त्ति नाम ठविध । संपत्तजोव्वर्ण तं पवणवेगो आभापुरीनरवइ-वीरसेणभूवइणा सद्धिं परिणावेइ। अच्छरसाहितो संलद्धविविहविज्जा सा नियप्पिए सग्गं गए समाणे सयं चेव आभापुरीरज पसासिउंलग्गा । रूवमईए दासीए पजंतसमयम्मि कोसीपक्खिणि पंचनमुक्कारमहामंतो सुणाविओ तओ तप्पहावेण एयाए वीरमईए विविहविज्जा-रज्जसमिद्धिसंजुओ माणवो भवो लद्धो। अह रुवमई कोसीपक्खिणीए देहं समुइयठाणम्मि परिढविऊण वियाणियजिणमयतत्तसारा पच्छा पक्खिणीवह-समुप्पण्णभूरिदुक्खा अईव पच्छायावं विहेइ-अवियारियकज्जकारिणि मं धिरत्यु, जं अणुवमं लोगुत्तमं जिणधम्मं पाविऊणं पि निद्दयाए मए एसा निरवराहिणी पक्खिणी हया, मज्झ का गई होहिइ ? ।। अह मिच्छत्तोवहयचित्ता गन्विट्ठा दुहासया तिलगमंजरी पक्खिणीए वहं निसमिऊण जिणमयं निंदंती रूवमई वएइ-अज्जच्चिय तुव जिणधम्मो मए दिट्ठो, जहिं मुहम्मि दयादयत्ति पुक्करिज्जइ कज्जाइं च एरिसाई हवंति, रे पाविणि ! तुव दीणाए निरवराहिणीए एरिसीए पविखणीए वहम्मि दया किं न संजाया !,तं च हंतुं तव हत्था किं न खलिआ?, अहं पाणाण अच्चए वि एआरिसं अणाहं जीवं न हिंसेमि, एवं सवक्कीए एरिसवयणेहि ॥२४६॥ www.jainelibrary.org For Personal Private Use Only Jan Education inte

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