Book Title: Siri Chandrai Chariyam
Author(s): Kastursuri, Chandrodayvijay, 
Publisher: Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 274
________________ सिरिचंदरायचरिप ॥२२२॥ Jain Education Intentatio सुही संजाओ ?, जो हि अखंडियं सीलव्वयं पालेइ सो इहयं सुहं अणुभविऊण सासयं अव्वाबाहं सुहं oes, इत्थओ भवजलहिम्मि निमज्जण सिलासरिसा हवंति, तओ ताओ चइऊण अणेगे भविया भवसमुद्दाओ पारं पावित्था | लोहपुत्तलिगं पिव परजुवई आलिगिऊणं कियंता पुरिसा भवण्णवम्मि निम्मज्जिआ अज्ज वि ते बाहिरं न निग्गया, किं च ललियंगकुमारो वि, परित्थीसंगमुस्सुगो । असज्झदुक्खमावण्णो, कामभोगंधिओ जडो ॥ १११ ॥ वृत्तं च संसारे हयविहिणा, महिलारूवेण मंडियं पासं । बज्झति जाणमाणा, अयागमाणा वि बज्झति ॥ ११२ ॥ गंगाइ वालुअं सायरे, जलं हिमवओ य परिमाणं जाणंति बुद्धिमंता, महिलाहिअयं न याति ॥ ११३ ॥ उन्नयमाणा अखलिअ - परक्कम सुपंडिआ वि गुणकलिआ । महिलाहि अंगुलीसु अ, नच्चाविज्जति ते वि नरा ॥ ११४ ॥ अहं आरिस मुरुक्खो न, जओ वियाणंतो समाणो भवम्मि भमिऊण असज्झदुक्खभायणं हवेमु ? | इत्थीहच्चाभरण सीलव्वयभंगस्स कारगो अहं न होमि, इह अग्गिणा दड्ढो एगम्मि भवम्मि दुहं पावेइ, परंतु कामदहणेण जलिओ नरो बहुअभवेसु दुक्खसहस्साई लहेइ, तुं किल मम धम्मवहिणी अहवा धम्मजणणी सि, तम्हा उच्चकुलसमुप्पन्नाए तुव एरिसवयण- वियारो वि न समुइओ' । एवं सीलव्वयम्मि दिव्यरमई चंदरायं पासिऊ सो देवो विज्जाहरीरुवं चइत्ता नियरूवेण तहिं पयडीहूओ, सच्चपइण्णस्स चंदरायस्स सिरम्मि पुप्फबुट्ठि विऊणं सो वrs - घण्णा तुम्ह मायपियरा, जेहिं तारिसी सीलगुणुवेओ उत्तमो नंदणो लद्धो । तुं पि जारिसो For Personal & Private Use Only चउत्थो उद्देसो ॥२२२॥ www.jainelibrary.org

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