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नेह धरीने एह रे, गुण श्रीजे भवे ते शिव लहे, सुण० थाये निर्मल देह रे,
गुण०३ प्रीत धरी प्रदक्षिणा, सुण दीए एहने जे सार रे, गुण० अभंग प्रीति होय तेहने, सुण० भवोभव तुम आधार रे,
गुण० ४ कुसुम पत्र फल मंजरी, सुण० शाखा थड ने मूल रे, गुण देव तणा वासाय छे, सुण० तीरथने अनुकूल रे,
गुण० ५ तीरथ ध्यान धरो मुदा, सुण० सेवो एहनी छांय रे, गुण 'ज्ञानविमल' गुण भाखीयो, सुण० शत्रुजय महात्म्य मांय रे.
गुण०६ (जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, नमोऽर्हत्)
थोय श्री शत्रुजय आदिजिन आव्या, पुरव नव्वाणुं वारजी, अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारजी, विमल गिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी, कांकरे कांकरे, अनंता सिध्या, एक सो आठ गिरि नामजी.
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