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कर आदिनाथ को चंदन पाप पखालुं रे.
जो मोर कहीं बन जाउं प्रभु आगे नृत्य रचाउं, रावण की तरह तिर्थकर पद की पूंजी एक कमालूं,
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शिवसुख पालुं रे. १
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जो कोयल में बन जाउं प्रभुजी के गाने गाउं, मैं दिनानाथ को रीझा रीझाकर अपना भाग्य जगालुं.
शिवसुख. २
ईस गिरि का एक एक कंकर, हीरे से मोल है बढकर, कोई चतुर जहौरी अगर मिले तो सच्चा मोल करालुं. शिवसुख. ३
समता का द्वार बनालु, तप की दीवार चीनालुं, जहां रागद्वेष नहीं घुसने पाये ऐसा महल बनालुं.
शत्रुंजय शत्रु विनासे, आत्मा की ज्योत प्रकाशे, मैं भावभक्ति के रंगमें अपना जीवनवस्त्र रंगालुं.
५४. आदि जिणंदा माता
आदि जिणंदा माता मरूदेवी नंदा,
तुम पर वारी जाउं बोल बोल रे,
कार्तिक पूनम दिन आवे, मन यात्रा को हुलसावे, मैं रामधर्म का नीर सिंचकर आतम बाग खिलालुं.
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शिवसुख. ४
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शिवसुख. ५
शिवसुख. ६