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शाश्वत सुख पाम्या सही, वंदु तेहनां पाय रे . ए० सीमंधर स्वामी उपदिशे, परषद बार मझार रे. इंद्र प्रते कहे भरतमां, एक शत्रुंजय सार रे. ए० इम निसुणी ए गिरि नमी, आव्या कालिकसूरि पास रे; ए० पूछी विचार निगोदना, बात कही तव खास रे. ए० प्रतिमा चैत्य थयां इहां, तिम असंख्य उद्धार रे; ए० चैत्री पूनम दिन एहनो, महिमा भांख्यो अपार रे. ए० चैत्री उत्सव जे करे, ते लहे भवदुःख भंग रे; ए० श्री विजयराजसूरीसरू, दान अधिक उछरंग रे. ए० ६५. ऐसी दशा हो भगवन
(राग : मैं कही कवि न बन जाउं ) ऐसी दशा हो भगवन, जब प्राण तनसे निकले, गिरिराज की हो छाया, मन में न होवे माया,
उरमें न मान होवे, दिल एक तान होवे,
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तपसे हो शुद्ध काया. १
संसार दुःख हरणां, जैन धर्मका हो शरणां,
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तुम चरण ध्यान होवे. २
हो कर्म मर्म खरणां. ३
अनशनको सिद्ध वट हो, प्रभु आदिदेव घट हो, गुरूराज भी निकट हो. ४
यह दान मुजको दीजे, इतनी दया तो कीजे, अरजी सेवक (तिलक) की लीजे. ५
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