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श्री आदिनाथ जिन प्रार्थना ऐश्वर्य केवल लक्ष्मी का ऐसा प्रभु था आपका मिथ्यामति भी शरण लेते त्याग कर संताप का जिस ऋद्धि के एक अंश को, भी तरसते हैं सुरतरु ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं. दर्शन करें नेना मेरे पल-पल मेरे पावन बनें, कर्णों को निशदिन आपका गुण श्रवण मन भावन बनें इस कर युगल से मैं सदा वीतराग की पूजा करूं ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं. चाहुँ नहीं वैभव प्रभुजी ना ही झूठी नामना जगबन्धु अन्तरयामी मेरी एक बस यही कामना शीतल शरण की छाँह में वीतरागी खुद बन जाऊँ मैं ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं. ये चाँद सा मुखडा तुम्हारा पीयूष की वर्षा करे भीगा नहीं पत्थर हृदय, मन मयूर भी तरसा करे पत्थर से मेरे हृदय को कोमल बनाओ हे विभु ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को भाव से वंदन करूं.
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