Book Title: Siddhachal Vando Re Nar Nari
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Mahendrasagar

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Page 190
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाँच स्तुतियाँ (१) विद्याधरोने इन्द्रदेवो जेहने नित पूजता, दादा सीमंधर देशनामां जेहना गुण गावता, जीवो अनंता जेहना सानिध्यथी मोक्षे जता, ते विमल गिरिवर वंदता भुज पाप सहु दूरे थता. ( २ ) षट्खंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामता, षोडश कषायो परिहरने सोलमां जिन राजता, चोमास रही गिरिराज पर जे भव्यने उपदेशता, ते शांतिजिनने वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (३) जेनुं झरंतु क्षीर पुण्ये मस्तके जेने पडे, ते त्रण भवमां कर्म तोडी सिद्धि शिखरे जई चडे, ज्यां आदि जिन नव्वाणुं पूर्व आवी सुणावता, रायण पगलां वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (४) जे आदि जिननी आण पामी सिद्धगिरिए आवता, अणसण करी एक मासनुं मुनि पंचक्रोडशुं सिद्धता, जे नामथी पुंडरिकगिरि एम तिहुं जगत बिरदावता, पुंडरिकस्वामी वंदता मुज पाप सहू दूरे थता. (५) जे राजराजेश्वर तणी अद्भुत छटाए राजता, शाश्वतगिरिना उच्च शिखरे नाथ जगना शोभता, जेओ प्रचंड प्रतापथी जगमोहने विदारता, ते आदि जिनने वंदता मुज पाप सहु दूरे थता. १७३ For Private and Personal Use Only १ १ १ १

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