Book Title: Siddhachal Vando Re Nar Nari
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Mahendrasagar

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Page 162
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस गणधर मुनिमां वडा, नामे कदंब अणगार. प्रभु वचने अणसण करी, मुक्तिपुरीमां वास: नामे (कदंबगिरि) नमो, तो होय लील विलास. सि. १९ पाताले जस मूल छे, ( उज्जवलगिरि) नुं सार; त्रिकरण योगे वंदता, अल्प होय संसार. तन मन धन सुत वल्लभा, स्वार्गादिक सुखभोग; जे वंछे ते संपजे, शिवरमणी-संयोग. विमलाचल परमेष्ठिनुं, ध्यान धरे षट्मास; सि. २० " तेज अपूरव विस्तरे पूगे (पूरे) सघली आश. त्रीजे भव सिद्धि लहे, ए पण प्रायिक वाच; उत्कृष्टा परिणामथी, अंतरमुहूर्त साच. (सर्व कामदायक) नमो, नाम करी ओलखाण; श्री शुभवीर विजय प्रभुः नमतां क्रोड कल्याण. दादा की प्रदक्षिणा के १०८ दोहे श्री आदीश्वर अजर अमर, अव्याबाध अहोनीश, परमातम परमेश्वरु, प्रणमुं परम मुनीश. जय जय जगपति ज्ञानभाण भासित लोकालोक, शुद्ध स्वरूप समाधिमय, नमित सुरासर थोक. श्री सिद्धाचल मंडणो, नाभि नेरसर नंद, मिथ्यामति मत भंजणो, भविकुमुदाकरचंद. पूर्व नवाणुं जश शिरे, समवसर्या जगनाथ, ते सिद्धाचल प्रणमिए, भक्ते जोडी हाथ. १४५ For Private and Personal Use Only सि. २१ १ २ OC ४

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