Book Title: Siddhachal Vando Re Nar Nari
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Mahendrasagar

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Page 171
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० १०१ . . भद्र भला जे गिरिवरे, आवे होय अपार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, नाम सुभद्र संभार. वीर्य वधे शुभ साधुने, पामी तीरथ भक्ति, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, नामे जे द्रढशक्ति. शिवगति साधे जे गिरि, ते माटे अभिधान, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, मुक्तिनिलय गुणखाण. चंद्र सूरज समकितधरा, सेव करे शुभ चित्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पुष्पदंत विदित. भिन्न रहे भवजल थकी, जे गिरि लहे निवास, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, महापद्म सुविलास. भूमि धरी जे गिरिवरे, उदधि न लोपे पीह, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पृथ्वीपीठ अनीह. मंगल सवि मलवातj, पीठ एह अभिराम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, भद्रपीठ जसनाम. मूल जस पाताल में, रत्नमय मनोहार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, पाताल मूल विचार. कर्मक्षय होवे जिहां, होय सिद्धि सुखकेल, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, अकर्मक मन मेल. कामित सवि पुरण होय, जेहनुं दरिसन पाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, सर्वकाम मन ठाम. इत्यादिक एकवीश भला, निरूप नाम उदार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिए, आतम शक्ति अनुसार. १०४ १०५ १०६ qolg १०८ १५४ For Private and Personal Use Only

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